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पौष दसें उजियारा, अरि-घाति ज्ञान-भानु-जिन पाया। प्रातिहार्य-वसु धारा मैं सेऊँ सुर-नर जासु यश गाया।
ॐ ह्रीं पौषशुक्ला-दशम्यांज्ञानकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
सम्मेद-शैल भारी, हन कर अघाति मोक्ष जिन पाई।
जेठ चतुर्दशि कारी, मैं पूजू सिद्धथान सुखदाई।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-चतुर्दश्यां मोक्षकल्याणक-प्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5।
जयमाला (छप्पय छन्द) भये आप जिनदेव जगत में सुख विस्तारे। तारे भव्य-अनेक तिन्हों के संकट टारे।।
टारे आठों कर्म मोक्ष-सुख तिनको भारी। भारी विरद निहार लही मैं शरण तिहारी।। तिहारे चरणन को न दःख-दारिद संताप-हर। हर सकल कर्म छिन में शांति जिनेश्वर शांति कर।1।
दोहा सारंग-लक्षण चरण में, उन्नत धनु चालीस। हाटक-वर्ण शरीर धुति, नमूं शांति जग-ईश।2।
छन्द भुजंग-प्रयात प्रभो आपको सर्व के फन्द तोड़े, गिनाऊँ कछु मैं तिनों नाम थोड़े। पड़ी अंबु के बीच श्रीपाल-राई, जपो नाम तेरो भए थे सहाई।3। धरो राय ने सेठ को सूलिका पै, जपी आपके नाम की सार जापै। भेय थे सहाई तबै देव आये, करी फूल-वर्षा सिंहासन बनाये।4। जबै लाख के धाम वह्नि प्रजारी, भयो पाण्डवों पै महा-कष्ट भारी। जबै नाम तेरे तनी टेरी कीनी, करी थी विदुर ने वहीं राह दीनी।5। हरी द्रोपदी धातकी-खंड मांही, तुम्हीं वहां सहाई भला और नाहीं। लियो नाम तेरो भलो शील पालो, बचाई तहां ते सबै दुःख टालो।6। जबै जानकी राम ने जो निकारी, धरे गर्भ को भार उद्यान डारी।
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