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श्रीमहावीर जिन-पूजा (रचयिता - श्री राजमल जी)
वर्धमान सुवीर वैशालिक श्री जिनवर को।
वीतरागी तीर्थंकर हितंकर अतिवीर को।। इन्द्र-सुर-नर-देव-वंदित वीर सन्मति धीर को। अर्चना पजा करूँ मैं नमन कर महावीर को।। नष्ट हो मिथ्यात्व प्रगटाऊँ स्वगुण गंभीर को।
नीर-क्षीर-विवेक पूर्वक हरूँ भव की पीर को।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
जल से प्रभु प्यास बुझाने का झूठा अभियान किया अब तक। पर आश पिपासा नहीं बुझी मिथ्या भ्रममान किया अब तक।।
भावों का निर्मल जल लेकर चिर तृषा मिटाने आया हूँ।
हे महावीर स्वामी! निज हित मैं पूजन करने आया हूँ।।1।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शीतलता हित चन्दन चर्चित नित करता आया था अब तक। निज शीत स्वभाव नहीं समझा पर-भाव सुहाया था अब तक।।
निज भावों का चन्दन लेकर भव-ताप हटाने आया हूँ।।
हे महावीर स्वामी! निज हित मैं पूजन करने आया हूँ।। 2। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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