Book Title: Chovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 771
________________ दुःखमय अथाह भवसागर में, मेरी यह नौका भटक रही। शुभ-अशुभ भाव की भँवरों में, चैतन्य शक्ति निज अटक रही ॥ तंदुल हैं धवल तुम्हें अर्पित, अक्षयपद प्राप्त करूँ स्वामी।। हे पंच परम परमेष्ठी प्रभु, भव-दुःख मेटो अंतर्यामी।। ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिभ्यः अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥ मैं काम-व्यथा से घायल हूँ, सुख की न मिली किंचित् छाया। चरणों में पुष्प चढ़ाता हूँ, तुमको पाकर मन हर्षाया॥ मैं कामभाव विध्वंस करूं, ऐसा दो शील हृदय स्वामी । हे पंच परम परमेष्ठी प्रभु, भव-दुःख मेटो अंतर्यामी।। ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिभ्यः कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। मैं क्षुधारोग से व्याकुल हूँ, चारों गति में भरमाया हूँ। जग के सारे पदार्थ पाकर भी, तृप्त नहीं हो पाया हूँ।। नैवेद्य समर्पित करता हूँ, यह क्षुधा-रोग मेटो स्वामी। हे पंच परम परमेष्ठी प्रभु, भव-दुःख मेटो अंतर्यामी।। ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिभ्यः क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मोहांध महाअज्ञानी मैं, निज को पर का कर्ता माना। मिथ्यातम के कारण मैंने, निज आत्म-स्वरूप न पहचाना॥ मैं दीप समर्पण करता हूँ, मोहांधकार क्षय हो स्वामी। हे पंच परम परमेष्ठी प्रभु, भव-दुःख मेटो अंतर्यामी।। ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिभ्यः मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 771

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