Book Title: Chovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 774
________________ बाहुबली स्वामी पूजन कर्म-अरिगण जीत के, दरशायो शिव-पंथ सिद्ध-पद श्री जिन लह्यो, भोगभूमि के अंत ॥ समर-दृष्टि-जल जीत लहि, मल्लयुद्ध जय पाय। वीर-अग्रणी बाहुबली, वंदौं मन-वच-काय॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्र ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् (आह्वाननम्)। ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः (संस्थापनम्)। ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् (सन्निधिकरणम्)। अष्टक (चाल जोगीरासा) जन्म-जरा-मरणादि तृष कर, जगत-जीत दुःख पावे। तिहि दुःख दूर-करन जिनपद को, आवे || पूजत जल परम-पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी । तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी॥ ॐ ह्रीं वर्तमानवसर्पिणीसमये मुक्तिस्थान- प्राप्ताय कर्मारिविजयी वीराधिवीर-वीराग्रणी - श्रीबाहुबलीपरमयोगीन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा॥ यह संसार मरुस्थल-अटवी, तृष्णा-दाह भरी है। तिहि दुःखवारन चंदन लेके, जिन-पद पूज करी है। परम पूज्य वीराधिवीर जिन, बाहुबली बलधारी । तिनके चरण-कमल को नित-प्रति, धोक त्रिकाल हमारी॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबली-परमयोगीन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 774

Loading...

Page Navigation
1 ... 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798