Book Title: Chovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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करै मोख का यतन निरास्रव, ज्ञानी जन होते।17।
8. संवर भावना ज्यों मोरी में डाट लगावै, तब जल रुक जाता। त्यों आस्रव को रोके संवर, क्यों नहिं मन लाता।। पंच महाव्रत, समिति, गुप्ति कर वचन-काय-मन सों। दशविध-धर्म, परीषह-बाइस, बारह भवन को।18। यह सब भाव सतावन मिलकर आस्रवको खोते।
सुपन दशा से जागो चेतन, कहाँ पड़े सोते।। भाव शुभाशुभ रहित शुद्ध-भावन-संवर भावै। डाट लगत यह नाव पड़ी मझधार पार जावै।19।
9. निर्जरा भावना ज्यों सरवर जल रुका सूखता, तपन पडै भारी।
संवर रोके कर्म, निर्जरा द्वै सोखनहारी।। उदय-भोग सविपाक समय, पक जाय आम डाली। दूजी है अविपाक पकावे, पालविषै माली।20। पहली सबके होय, नहीं कुछ सरे काम तेरा। दूजी करै जु उद्यम करके, मिटे जगत फेरा।। संवर सहित करो तप प्रानी, मिले मुकत रानी। इस दुलहिन की यही सहेली, जाने सब ज्ञानी।21।
___10. लोक भावना लोक अलोक अकाश माहिं थिर, निराधार जानो। पुरुष-रूप कर-कटी भये, षट्-द्रव्यन सों मानों।। इसका कोई न करता हरता, अमित अनादी है। जीवरु पुद्गल नाचै याचें, कर्म उपाधी है।22।
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