Book Title: Chovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 787
________________ पाप-पुण्य सों जीव जगतमें, नित सुख दुख भरता। अपनी करनी आप भरे, शिर औरनके धरता।। मोह कर्म को नाश, मेटकर सब जग की आसा। निज पदमें थिर होय लोकके, शीश करो बासा।23। __ 11. बोधि-दुर्लभ भावना दुर्लभ है निगोद से थावर, अरु त्रस गति पानी। नर काया को सुरपति तरसे सो दुर्लभ प्रानी।। उत्तम देश सुसंगति दुर्लभ, श्रावक-कुल पाना। दुर्लभ सम्यक दुर्लभ संयम, पंचम गुणठाना।24। दुर्लभ रत्नत्रय आराधन दीक्षा का धरना। दुर्लभ मुनिवर को व्रत-पालन, शुद्ध भाव करना। दुर्लभ से दुर्लभ है चेतन, बोधिज्ञान पावै। पाकर केवलज्ञान, नहीं फिर इस भवमें आवै।25। 12. धर्म भावना धर्म अहिंसा परमो धर्मः ही सच्चा जानो। जो पर को दुख दे, सुख माने, उसे पतित मानो।। राग द्वेष मद मोह घटा आतम रुचि प्रकटावे। धर्म-पोत पर चढ़ प्राणी भव-सिन्धु पार जावे।26। वीतराग सर्वज्ञ दोष बिन, श्री जिनकी वानी। सप्त तत्वका वर्णन जामें, सबको सुखदानी।। इनका चितवन बार बार कर, श्रद्धा उर धरना। मंगत इसी जतनतें इकदिन, भव-सागर-तरना।27। 787

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