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नहीं अतिशयोक्ति है इसमें, इक नाग जब कभी आता है। दर्शन ले जाप जपे मन में वह नाच-नाच हर्षाता है।।
घंटो ध्यान लगाता है, जब भक्त देखने आते हैं। यह दृश्य देख-देख कर जनता, अपने कर्म नशाते हैं।। हे संकटहर मम संकट हर लो अब देर न मेरी बार करो। तव चरणों में है जीवन अर्पित, मेरा बेड़ा पार करो।। देवनंदि गुण गाता है तब चरणों में शीश झुकाता है।
रत्नत्रयमय जैन धर्म की मंगलभावना भाता है।। पारसनाथ की जयमाला का जो करते नित पाठ।
सुखसम्पत्ति पाकर सदा हरते कर्मक्षय आठ।। ॐ ह्रीं श्री 1008 संकटहरपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
तीन-लोक-चूडामणि, सिद्ध शील जयवंत। संकटकर सुखसम्पत्ति करो, तुम्हें नमे नित सन्त।।
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥
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