Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja Author(s): Vijayvallabhsuri Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri View full book textPage 7
________________ ३ १४ सुपर्णकुमार नामा देवताओंमें जैसे वेणुदेव नामा देवता मुख्यप्रधान कहा जाता है, वैसेही व्रतोंमें मुख्य-प्रधान ब्रह्मचर्य कहा जाता है। १५ जैसे नागकुमार जातिके देवताओंमें धरणेंद्र प्रवर-प्रधान माना जाता है, वैसेही व्रतोंमें प्रवर-प्रधान ब्रह्मचर्य माना जाता है। १६ देवलोकोंमें जैसे पांचमा ब्रह्म देवलोक गुणाधिक प्रधान माना जाता है, वैसेही व्रतोंमें ब्रह्मचर्य प्रधान माना जाता है । १७ भवनपतिओंके भवनोंमें और देवलोकके विमानोंमें सुधर्मसभा, उत्पादसभा, अभिषेकसभा, अलंकारसभा और व्यवसायसमा, इन पांचोंही सभाओंमें जैसे सुधर्मसभा प्रधान मानी जाती है, वैसेही व्रतोंमें ब्रह्मचर्य व्रत प्रधान माना जाता है। १८ आयुमें जैसे लवसप्तम-अनुत्तर विमानवासी देवताओंकी आयु प्रधान मानी जाती है, वैसेही व्रतोंमें ब्रह्मचर्य व्रत प्रधान माना जाता है। १९ ज्ञानदान, धर्मोपग्रहदान और अभयदान-तीनोंही प्रकारके उत्तम दानोंमें जैसे अभयदान प्रधान-सर्वोत्तम माना जाता है, वैसेही सर्व उत्तम व्रतोंमें ब्रह्मचर्य उत्तम-प्रधान माना जाता है। २० रंगेहुए कपडोंमें जैसे किरमची रंगा हुआ लाल कंबल मुख्य माना जाता है (एक वकका लगा हुआ रंग फिर उतरता नहीं है-मजीठका रंगभी प्रायः ऐसाही माना जाता है,) वैसेही ब्रह्मचर्य व्रत, व्रतोंमें मुख्य माना जाता है । मतलब ब्रह्मचर्य रंग जिस आत्माको लगगया बस फिर वह आत्मा मुक्तिको प्राप्त हुए विना नहीं रहता है । २१ छप्रकारके संहननोंमें जैसे पहला वज्र-ऋषभ-नाराच नामा संहनन प्रधान कहा जाता है, वैसेही व्रतोंमें ब्रह्मचर्य व्रत प्रधान कहा जाता है। २२ छप्रकारके संस्थानोंमें जैसे पहला संस्थान समचतुरस्र नामा मुख्य माना जाता है, वैसेही व्रतोंमें मुख्य ब्रह्मचर्य माना जाता है। १ पंचमदेवलोकः तत्क्षेत्रस्य महत्त्वात्-तदिन्द्रस्यातिशुभपरिणामत्वात् प्रवरः। प्र० व्या० टीका । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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