Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

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Page 43
________________ धन्याश्री। (क्यांथी आ संभलाय मधुरधुनी-यह चाल) पूजन करो जिनचंद भविक जन, पूजन करो जिनचंद । पूरण ब्रह्मचारी प्रभु पूजन, शिवसुख सुरतरु कंद ॥१॥ जनोदरता तपमें कहावे, तप जप करम निकंद ॥ २॥ . नरनारी ब्रह्मचर्य व्रतधारी, भोजन अधिक तजंद ॥ ३॥ सहस वरस कीनो तप भारी, कंडरीक मुनि मति मंद॥४॥ विधविध जाति अधिक भोजनसे, नाश कियो ब्रह्म इन्द ॥५॥ अपध्यानी कामातुर मरके, सप्तम तल उपजंद ॥ ६ ॥ आतम लक्ष्मी ब्रह्म प्रभावे, वल्लभ हर्ष अमंद ॥ ७ ॥ (काव्य-मंत्र पूर्ववत्) पूजा दशमी। दोहरा। नवमी वाड कही प्रभु, साधु तजे भंगार । अवनीतल शोमे नहीं, शृंगारी अनगार ॥१॥--- स्त्रान विलेपन वासना, उत्तम वस्त्र अपार । उदभट वेश न धारिये, तेल तंबोल निवार ॥२॥ दातन स्नान निवारना, मौन नियम तप धार। केश लोच आदि क्रिया, ब्रह्मचर्य हितकार ॥३॥ चमक दमक अति ऊजला, वस्त्र धरे नहीं अंग। बहुमोला अति पातला, संभव होत अनंग ॥४॥ १ सातमी नरक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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