Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ २३ गयो दुर्गति गुण हारी, ब्रह्मचारी, भविजन कीजे अर्चना ॥ ती०४॥ सेलक सूरि सुत राजधानी, चारित्र चूकी हुओ मदपानी। रसवती सरस आहारी, ब्रह्मचारी, भविजन कीजे अर्चना ॥ ती० ५ ॥ आतम लक्ष्मी निज हित जानी, रसना जीतो हे भवि प्रानी । वल्लभ हर्ष अपारी, ब्रह्मचारी, भविजन कीजे अर्चना ॥ ती० ६ ॥ ('काव्य-मंत्र पूर्ववत्') पूजा नवमी.. दोहरा। मद्य विषय विकथा सही, निद्रा और कषाय । भवसागरमें डारते, पांच प्रमाद मिलाय ॥१॥. शत्रु त्याग प्रमादको, हो करके हुशियार । आतम सत्ता पामिये, होवे जय जय कार ॥२॥ जीत अपूरव जगतमें, ब्रह्मचर्य परभाव । तिस कारण है आठमी, वाड कही जिनराव ॥३॥ संयम पर जो प्रेम है, ब्रह्मचारी अनगार । अति मात्रा भोजन तजे, होवे भव दधि पार ॥४॥ अति मात्रा आहारसे, आवे उघ अपार । संभव शील विराधना, होवे स्वप्न मझार ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50