Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri
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व्रत रक्षाके कारणे, मादक सरस अहार । करें न भावें भावना, धन साधु अनगार ॥ ३ ॥ आतम बल निर्बल करे, उदय करमका जोर । ज्ञानी जन निर्लेप हो, पावें शिवपुर ठोर ॥४॥ वाड कही जिन सातमी, आतम निर्मल काज । तिण उपकारी जगतके, पूजे भवि जिनराज ॥ ५ ॥
सोहनी (ढुंढ फिरा जग सारा-यहचाल) तीर्थंकर हितकारी, ब्रह्मचारी,
भविजन कीजे अर्चना ॥ तीर्थ० अं०॥ त्यागो रसना जिन फरमावे,
रसना वस जग अति दुःख पावे । जावे नर भव हारी, ब्रह्मचारी,
भविजन कीजे अर्चना ॥ ती० १॥ रसना स्वादे धनको लूटावे,
खातिर नाकके पापी थावे । होवे खाना खुवारी, ब्रह्मचारी,
भविजन कीजे अर्चना ॥ ती० २॥ सरस रसोई चक्री स्वादे,
ब्राह्मण दुखियो हुओ बकवादे ।। पायो विटम्बना भारी, ब्रह्मचारी,
भविजन कीजे अर्चना ॥ ती० ३॥ रसना लंपट मंगु आचारज,
शिथिल हुओ छोरी मुनि कारज ।
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