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२० पूजा आठमी।
दोहरा. ब्रह्मचर्य रक्षा करे, मर्यादित नरनार । चाहे हो अनगार ही, चाहे हो सागार ॥१॥ मुख्य धर्म अनगारका, पाले पूरण वार । आदरसे गृही पालते, शक्तिके अनुसार ॥२॥ बाल वृद्ध विधवा लगन, मर्यादासे बहार । उत्तम नर नारी नहीं, देवें जग सतकार ॥३॥ लग्न समय सिद्धांतमें, यौवन वय परमान । देहातम अरु ब्रह्मकी, रक्षा कारण जान ॥४॥ सातमी वाड कही प्रभु, ब्रह्मचारीके हेत । भोजन सरस न कीजिये, जानी काम निकेत ॥५॥
दरबारी कानडा । और न देवाजी और न देवा, श्रीजिनवरकी करो भवि सेवा ।
और न देवाजी और न देवा ॥ अं०॥ सेवा प्रभुकी शुभ मन कीजे,
जनम जनमका लाहा लीजे । ब्रह्मचारी प्रभु आप कहावे,
रक्षा ब्रह्मचारीकी बतावे ॥ और० १॥ पुष्टिकार आहार न खावे, विगय अधिकमें मन न लगावे ।
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