Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

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Page 37
________________ १९ दोहरा. ब्रह्म नाम है ज्ञानका, ब्रह्म नाम है जीव । सदाचार ब्रह्म नाम है, रक्षा वीर्य सदीव ॥१॥ जिम लोकोत्तर शास्त्रमें, ब्रह्मचर्य परधान । तिम लौकिकमें जानिये, सर्वगुणोंकी खान ॥२॥ ब्रह्मचर्य तपसे मिले, मोक्ष परमपद धाम । चतुराश्रममें मुख्य है, ब्रह्मचर्यको नाम ॥ ३ ॥ तत्त्वारथमें ब्रह्मको, गुरुकुलवास वखान । आशय सबका एकहै, निज आतम कल्यान ॥४॥ आतम निजगुण पूजना, पूजा श्री भगवान । तिण कारण पूजा प्रभु, कीजे विविध विधान ॥५॥ वसंत (होइ आनंद बहाररे-यह चाल) ब्रह्मचारी भगवानरे-भवि सेवो हृदयसे ॥ अंचली ॥ भर यौवन रामा घरेरे, धनकाभी नहीं मानरे-भवि०॥१॥ श्वसुर पक्ष पितृगृहेरे, मिलता था बहु मानरे-भवि० ॥२॥ हाव भाव शंगारमेंरे, रहते थे गलतानरे ॥ भवि०॥३॥ इत्यादि स्मृति गोचरेरे, हानि ब्रह्म निधानरे ॥ भवि० ४॥ जिनरक्षित जिनपालकारे, ज्ञाता सूत्र वखानरे ॥ भवि०५॥ विराधक होवे दुखीरे, जिनरक्षितके समानरे ॥ भवि०६॥ इसकारण दिल धारियेरे, छट्ठी वाड प्रमानरे ॥ भवि० ७॥ आतम लक्ष्मी पामियेरे, वल्लभ हर्ष अमानरे ॥ भवि० ८॥ (काव्य-मंत्र पूर्ववत्) १ स्त्री। २ माप-परिमाण । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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