Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

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Page 35
________________ ब्रह्मचर्य धारीरे, जग उपकारीरे, भावे भवि सेविये होजी । अंचली ॥ संयोगी पासे रहे, ब्रह्मचारी निस दीस । कुशल न उसके ब्रह्मको, टूटे विसवा वीस । ठहरे नहीं मुनिजन ऐसे थान-ब्रह्म० ॥१॥ निकट ही भीतके अंतरे, नारी रहे जहां रात । केलि करे निज कंतसे, विरह मरोडे गात । विरहाकुल हो हीन दीन वदे वान-ब्रह्म०॥२॥ कोयल जिम टहुका करे, गावे मीठे साद । मदमाती राती अति, सुरत करत उन्माद । कामावेशे हस हस करत गुमान-ब्रह्म० ॥३॥ मोरा नाचे भूतले, गगन सुनी गरजार । मन नाचे ब्रह्मचारीका, शब्द सुनी शृंगार । त्यागे साधु रस शृंगार पिछान-ब्रह्म०॥४॥ पांचमी वाड आराधिये, ब्रह्मचर्य व्रत धार । आतम लक्ष्मी पामिये, वल्लभ हर्ष अपार । समझो ऐसे भाखे श्रीभगवान-ब्रह्म० ॥५॥ (काव्य-मंत्र पूर्ववत्) पूजा सातमी. दोहरा। ब्रह्मचर्य दो भेद है, सर्व देशसे जास । जिन गणधर वर्णन करे, आतम रूप विकास ॥१॥ चा. पू. २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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