Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ क्रीडा करती कामिनी रागेरे, स्वर सुनने में आवे ॥२॥ हाव भाव हाँसी स्त्री रोनारे, यहभी संभव थावे ॥३॥ शील रत्नको लांछन लागेरे, मनमें मन्मथ भावे ॥४॥ जिम भाजनमें अग्नि पासेरे, लाख मोमै ढल जावे ॥५॥ इस कारण साधु ब्रह्मचारीरे, ऐसे स्थान न ठावे ॥६॥ आतम लक्ष्मी ब्रह्म प्रभावेरे, वल्लभ हर्ष मनावे ॥७॥ दोहरा। द्रव्य क्षेत्र अरु कालसे, भाव भेद इम चार । व्रत षट मन वच कायसे, आराधे अनगार ॥१॥ धरम सुकल दो ध्यानके, अधिकारी ऋषिराज। तप कर काया सोसवे, काटे कर्म समाज ॥२॥ परिषह दो अरु बीसको, जीत सहे उपसर्ग। सोलां पण विन ब्रह्मके, पावे नहि अपवर्ग ॥ ३ ॥ रक्षण निजगुण ब्रह्मका, सब किरियाका मूल । योगी ब्रह्म प्रतापसे, पावे भवजल कूल ॥ ४ ॥ पंचम वाड कही प्रभु, ब्रह्मचारीके हेत । संजोगी नर नारके, निकट रहे न निकेत ॥५॥ (चिंतामणि स्वामीरे-यह चाल) ब्रह्मचर्य धारीरे, जग उपकारीरे, भावे भवि सेविये होजी। ब्रह्मचारीकी सेवा शिव सुख देत, सेवा करके सेवक शिव सुख लेत । सी।२ कामदेव । ३ मीण । १ मोक्ष ।५ किनारा-तीर-कांठा । ६मकान । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50