Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri
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निरखत दिनकर सामने, नयन घटे जिम तेज । तिम तैरुणी देखत घटे, शील न लागे जेजें ॥२॥ हसित भणित चेष्टित गति, क्रीडित 'गीत विलास । ईक्षित वाँदित आकृति, यौवन वर्ण विकास ॥३॥ अधर पयोधर देहके, अन्य गुंह्य अवकाश । वसन विभूषा रागसे, देखत शील विनाश ॥ ४॥ इस कारण हित कारणे, वार वार उपदेश । नारीदर्शन त्यागना, चौथी वाड जिनेश ॥ ५ ॥
(केसरिया थांसुं प्रीत करीरे-यह चाल) ब्रह्मचारी जिनवर पूजाकरेरे भवि भावसे-अंचली चौथी वाड कहे प्रभुरे, श्रीजिन दीनदयाल । मनहर दर्शन नारीकोरे, मन वच काया टालरे-ब्रह्म॥१॥ दीपक नारी रूपमेंरे, कामी पुरुष पतंग । झिपलावे सुख कारणेरे, जल जावे निज अंगरे -ब्रह्म॥२॥ मनगमता रमता हियेरे, उर कुच वदन सुरंग । नहर अहर भोगी डस्योरे, देखंतां व्रत भंगरे-ब्रह्म० ॥३॥ कामणगारी कामिनीरे, जीता सकल संसार । आंख अणी नहीं को रह्योरे, सुर नर सब गये हाररे-ब्रह्म०॥४ हाथ पांव छेदे हुएरे, कान नाक भी जेह । बूढी सौ वरसां तणीरे, ब्रह्मचारी तजे तेहरे-ब्रह्म०॥५॥
१ देखत । २ सूर्य । ३ स्त्री । ४ देर । ५ हँसना । ६ बोलना । ७ चे. ष्टाका करना । ८ चलना । ९घृतादि क्रीडाका करना । १० गाना। ११ कटाक्ष । १२ देखना । १३ वीणा आदिका बजाना । १४ रूप । १५ रंगगौर आदि । १६ होठ । १७ स्तन । १८ गुप्त । १९ अवयव । २० वस्त्र । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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