Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

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Page 47
________________ २९ मनवचकाया शुद्ध धार अध्यातम मानी, आतम लक्ष्मी प्रभु आप अनुपम ज्ञानी । वल्लभ हर्षे ब्रह्मचर्यगुणे मस्तानी ॥ आतम० ७॥ (काव्य-मंत्र पूर्ववत्) कलश. (भवि नंदो जिनंद जस वरणीने-यह चाल) भवि वंदो गुणी ब्रह्मचारीने ॥ भवि० अं०॥ पूजन ब्रह्मचर्य सुखकारी, करे भवि निज हित धारीने ॥ भवि० १॥ अपुनरावृत्ति फल पावे, भावे शीलको पारीने ॥ भवि० २॥ नूतन श्रीजिन चैत्य बनावे, कोटि निष्क दान कारीने ॥ भवि० ३ ॥ होवे नहीं ब्रह्मचर्य बराबर, आगम पाठ उच्चारीने ॥ भवि० ४ ॥ ब्रह्मचर्यसे चारित्र दीपे, विना ब्रह्म सब हारीने ॥ भवि० ५॥ जिन गणधर सुर गुरु गुण गावे, आवे न पार अपारीने ॥ भवि० ६॥ मैं मतिहीन कथं भक्तिवश, निजशक्ति अनुसारीने ॥ भवि० ७॥ मोहर । २ जो देइ कणयकोडि अहवा कारेइ कणय जिणभवणं । तस्स न तत्तियपुणं जत्तिय बंभवए धरिए ॥" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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