Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri
View full book text
________________
प्रभु वीर जिनंद फरमाया, पाले ब्रह्म मन वच काया। होवे उत्तम तस आयारे-ब्रह्मचारी धीर वीर-बै०॥१॥ संसर्गज दोष कहावे, अनुभवमें सबके आवे । वैज्ञानिक भी इम गावेरे-ब्रह्मचारी धीर वीर-बै० ॥२॥ इम बैठे ऑसंग थावे, आसंगे तन फरसावे । फरसे तस रस ललचावेरे-ब्रह्मचारी धीर वीर-बै० ॥३॥ संभूत मुनि चित्त दीनो, फरसे तप निष्फल कीनो। चक्रीपद मांगके लीनोरे-ब्रह्मचारी धीर वीर-बै० ॥४॥ भ्राता चित्रे समझायो, चारित्र उदय नहीं आयो। दुख सातमी नरके पायोरे-ब्रह्मचारी धीर वीर-बै० ॥५॥ आतम लक्ष्मी हित खानी, पूजा प्रभु वीर वखानी ।। वल्लभ हर्षे मन मानीरे- ब्रह्मचारी धीर वीर-बै०॥६॥
(काव्य-मंत्र पूर्ववत्)
पूजा पांचमी।
दोहरा। भगवती वीर वखानियो, मैथुन पाप सरूप । जानी ब्रह्मचारी रहें, पावें आतम रूप ॥१॥ नरनारी संयोगमें, गर्भज नव लख जान । जीव समूर्छिम ऊपजे, संख्या नहि तस मान ॥२॥ दो पण इन्द्रिय जीवकी, हिंसा अपरंपार । तदुल वैचारिक सुनी, ब्रह्मचर्य भवि धार ॥ ३ ॥ १ आत्मा । २ सोहबतसे । ३ पदार्थ विद्याके ज्ञाता। . भासक्तिराग । ५ शतक २ उद्देशा ५।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50