Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri
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आतम लक्ष्मी महाराज, शुद्धालंबन जिनराज । वल्लभ हर्षे शुद्ध काज, प्रभु गिरतेको बचानेवाले ॥धन०५॥
(काव्य-मंत्र पूर्ववत्)
पूजा चौथी।
दोहरा। तप संयम और ब्रह्मका, मैथुन नाश करंत । निशदिन शंकित मन रहे, करे कुशलका अंत ॥१॥ ध्यानी मौनी वल्कली, मुंड तपस्वी जान । ब्रह्मा भी ब्रह्म हीन हो, तैनिक न पावे मान ॥२॥ . पढा गुना जाना सभी, सफल कहावे तास । अनुचित करणी करनकी, कभी करे नहि आस ॥३॥ . ब्रह्मचर्यने जगतमें, अतिशय पुण्य प्रभाव । व्रतमें गुरु पदवी लही, साधी आत्म स्वभाव ॥४॥ सर्व पापके तुल्य है, मदिरा मांसाहार । चार वेदके तुल्य है, ब्रह्मचर्य जग सार ॥ ५॥
(सोहनी-सिद्धाचल तीरथ जानाजी-यह चाल) भविब्रह्मचर्य गुण गानाजी। गानाजी सुख पानाजी ॥ भवि० अंचली ॥
कार्य। २ थोडासाभी। ३ व्रतानां ब्रह्मचर्य हि, निर्दिष्टं गुरुकं व्रतम् । नजन्यपुण्यसम्भार-संयोगाद् गुरुरुच्यते ॥१॥(प्र० व्या० टी०)॥ ४ तन्त्रान्तरीयैरप्युक्तम्-एकतश्चतुरो वेदाः, ब्रह्मचर्यं च एकतः । एकतः सर्वपापानि, मयं मांसं च एकतः ॥ (प्रश्नव्याकरणटीका)
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