Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

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Page 17
________________ मोक्षमार्गः" इस मुजिब दर्शन, ज्ञान और चारित्र इन तीनोंका मोक्षप्राप्तिमें एक जैसा हक्क है। तीनोंमेंसे एक भी न होवे तो मोक्षप्राप्ति नहीं हो सकती है। चारित्रविनाके दर्शन और ज्ञान किसी प्रकार अविरति सम्यग् दृष्टि चतुर्थगुणस्थानमें मान लिये जावें, परंतु दर्शन और ज्ञानके विना चारित्र तो होही नहीं सकता है । जब क्षायिक दर्शन क्षायिक ज्ञान और क्षायिक चारित्र तीनों होवें तो फिर मोक्षमें देरी नहीं; उसमें भी सर्व संवररूप चारित्रके होनेपर तत्काल-अनंतरहि जीव मोक्षको प्राप्त होता है। इसीवास्ते चारित्रकी मुख्यताको स्वीकार और "सम्यग्दर्शनपूजा" "सम्यग्ज्ञानपूजा" इसप्रकार दो पूजा प्रथम बनचुकी होनेसे रत्नत्रयी-“(दर्शन-ज्ञान-चारित्र)" पूर्ण करनेकी इच्छाको ध्यानमें रखकर इस पूजाका नाम "चारित्रपूजा" भी रखागया है। अंतमें सजनोंसे सविनय मेरी यही प्रार्थना है कि, न तो मैं गीतार्थ ही हूं और ना ही कवि हूं! छद्मस्थसे स्खलनाका होना अनिवार्य है। अतः कृपया मेरे दोष मेरेही लिये छोड़कर, यदि कोई भी गुण आपको नजर आवे तो लेलेवें और आप गुणग्राही-गुणी ही बने रहें इति, सुज्ञेषु किंबहुना। प्रार्थीश्रीजैनसंघका दास-मुनि-व. वि.। होशियारपुर (पंजाब) १९८० श्रावण सुदि पूर्णिमा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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