Book Title: Charitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Author(s): Vijayvallabhsuri
Publisher: Bhogilal Tarachand Zaveri

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Page 13
________________ महाराजने वर्णन किये हैं, उनका संक्षेपसे दिग्दर्शन कराकर ज्ञानिमहाराज-प्रभु-वीतरागदेवकी पूजा करतेहुए ज्ञानकी आराधना होनेसे जीव आराधक बनकर ज्ञानावरणीय कर्मको क्षयकर यावत् महाज्ञानी-केवलज्ञानी बन जाता है इत्यादि आशय उपलब्ध होता है। मतलब इसी प्रकार प्रत्येक पूजामें रहाहुआ गूढ आशय-रहस्य समझलेना चाहिये । कोईभी पूजा आशय या रहस्य-के विनाकी नहीं है। पूर्वाचार्योंने-पूर्व पुरुषोंने-संस्कृत प्राकृत ग्रंथोंको वांचनेकी शक्तिसे रहित ऐसे श्रद्धालु भव्यजीवोंको ज्ञानवान्-जानकार और कर्तव्यपरायण सदाचारी बनानेके उद्देशसेही खासकर भाषाग्रंथोंमें उसका उद्धार करके उपकार किया है। परंतु यह सब किनके लिये ? जो उत्साहसे इकट्ठे होकर प्रेमपूर्वक उपयोगसहित कार्य करें उनके लिये । बाकी आजकालके प्रायः निरुत्साही गले पडा ढोल बजानेवालोंके लिये नहीं ! प्रसंग वश कहना पड़ता है कि, कितनेक ठिकाने पूजा पढ़ाई जाती है वहां स्नात्री तो पूजारी (गोठी) और चंडीपाठकी तरह पाठकरके वेठ (वगार) उतारनेवाले भोजकके सिवाय भगवान् ही भगवान् देखने में आते हैं ! __ हां कदापि कहीं सतरां भेदी पूजाके साथ अठारमा भेद-जीमन वारदूधपाक पूरी या लड्डु कचौरी का जोर होता है तो घने बाई भाई नजर आते हैं, परंतु वोभी इधर उधर फिरते रहते हैं या रसोईके काममें तलालीन रहते हैं ! इस प्रकारके वर्तनसे कैसा और कितना लाभ हो सकता है स्वयंही विचार करलेना योग्य है। ___ तात्पर्य यह है कि, जब कभी पुण्योदयसे प्रभुपूजा पढ़ाई जावे तब सब बाई भाई एकत्रित होकर शांतिपूर्वक प्रेम और आनंद उत्साहसे जिनको पढ़ना और गाना आता होवे मधुर-मीठी आवाजसे पूजा गावें और बाकीके सब चुपचाप सुने । तथा भावार्थमें सबके सब अपना अपना उपयोग लगावें । इसतरह करनेसे घरबार काम धंधा छोड़कर प्रभुमंदिरमें आनेका लाभ प्राप्त होता है और पूर्वपुरुषोंका कियाहुआ उपकारभी सफल होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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