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प्रस्तुत पूजाभी इसी आशयसे राजनगर-अहमदाबाद निवासी झवेरी भोगीलाल ताराचंद (जो मंगल भाईके उपनामसे प्रसिद्ध हैं-और डोशी. वाडाकी पोलमें रहते हैं.) की प्रेरणासे बनाई गई है।
संवत् १९७७ चैत्र सुदिमें श्रीकेसरियानाथजीकी यात्रा करनेको झवेरी भोगीलालभाई आयेथे, उसवक्त मैं भी शिवगंजनिवासी संघवी गोमराज फतेचंद पोरवाडके संघमें श्रीकेसरियानाथजीकी यात्रार्थ वहां गयाहुआ था । संघवीजीकी प्रेरणासे श्रीऋषभदेव स्वामीके पंचकल्याणककी पूजा वहां तयार की थी। जिसके पढ़ानेका श्रीकेसरियानाथजीके दरबारमें पहलपहला लाभ झवेरी भोगीलालभाईने ही लिया था । उस समय इन्होंने प्रार्थना की थी कि, एक पूजा ब्रह्मचर्यकी बनाई जावे तो आशा की जाती है, घने जीवोंको पूजाके निमित्तसे ब्रह्मचर्यका लाभ होगा। विषय गहन और विचारणीय होनेसे अपनी शक्तिके बाहरका कार्य समझकर इसके जवाबमें मैनें मौनकाही सरणा लिया। कितनाही समय वीतादिया-परंतु-"जाकी जामें लगन है वाके मन वो देव" की कहावतके अनुसार सेठ भोगीलालभाईकी लगन इसीमें लगी रही । जब कभी किसी प्रसंगवश पत्रव्यवहार होता तो इस बातको अवश्य याद दिलाते थे आखिर मुझे यह काम करनाही पड़ा । मुझे हताशको उत्साही बनाकर ब्रह्मचर्य-चारित्र जैसे उत्तम गुणका गान करानेमें सेठकी प्रेरणा ही निमित्त बनी है, अत एव कलशमें सेठ भोगीलालभाईका परिचय बतौर यादगारके दियागया है।
इस पूजाके मंगलाचरणमें जगवल्लभ पारस प्रभु रखनेका मतलब यह है कि, जिस समय भोगीलालभाईकी अधिक प्रेरणा हुई और अहमदाबादनिवासी वकील केशवलाल प्रेमचंद मोदी दर्शनार्थ आये उनके साथभी कहला भेजा उस समय मैं मालेरकोटला (पंजाब) में था। ___ मालेरकोटलामें दो श्रीजैनमंदिर हैं। एक मोतीबाजारके रास्तेमें और दूसरा शहरके मध्यभागमें । दोनों ही शिखरबंध हैं, दोनोंमें श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिमा मूलनायकतरीके हैं । एकमें "शामला पार्श्वनाथ" और दूसरेमें "जगवल्लभ पार्श्वनाथ ।"
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