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भूमिका
प्रजा में बल, चेतना सतर्कता, अधिकारतत्परता पैदा करना, प्रजाशक्तिको प्रबल तथा उसे राजशकिका शासक बनाकर रखना ही चाणक्यकी राजनीति है | यही राजनीतिका अभ्रान्त बादर्श भी है यदि समाज राजनीतिके इस अभ्रान्त आदर्शको अपनाले तो निश्चय ही समाजमें स्वर्ग उतर आये । क्योंकि शान्तिप्रियता मानवस्वभाव है इसलिये प्रजाशक्तिका स्वभावसे दानव दलनकारीणी होना स्वतः सिद्ध है। यदि किसी देशकी राजशक्ति कर्तव्यपरायण हो तो वह प्रजा के दानवदलनी स्वभाव के सदुपयोगसे देश में शान्तिरक्षा कर सकती है। सुशिक्षा के द्वारा प्रजाशक्तिपर सत्यका नेतृत्व सुप्रतिष्ठित रखना ही प्रजाशक्तिको राजशक्तिका शासक बनाना है और यही समाजमें शान्ति तथा न्यायको सुरक्षित रखना भी है। प्रजाके सुशिक्षित होनेपर ही समाज में शान्ति और न्याय सुरक्षित रह सकता है । राजनीतिके इस अभ्रान्त आदर्श की शिक्षा से ही में मनुष्यता उत्पन्न हो सकती है । आर्य चाणक्यका साहित्य समाजमें शान्ति तथा न्यायकी रक्षा सिखानेवाला शिक्षाको सुप्रतिष्ठित रखनेवाला ज्ञानभंडार है । राजनैतिक शिक्षाका यह उत्तरदायित्व है कि वह मानवसमाजको राज्यसंस्थापन, राज्यसंचालन तथा राष्ट्रसंरक्षण नामक तीनों काम सिखाये । बिल्ली के भागसे टूटे छींके समान केवल राज्य पा जाना और बात है तथा राज्यसंचालन संरक्षण तथा संवर्धन दूसरी बात है |
दुर्भाग्य से भारतने चाणक्य के इस ज्ञानभंडारकी उपेक्षा करके स्वदेशी विदेशी दोनों प्रकारके शत्रुको आक्रमण करनेका निमन्त्रण देकर अपनेको शत्रुओं का निरुपाय आखेट बनानेवाली आसुरी शिक्षा अपनाली है। उसने शिक्षा में से नैतिकतारूपी धर्मका बहिष्कार करने में गौरव अनुभव किया है। शिक्षा में से नैतिकता अर्थात् चरित्रको बहिष्कृत रखना उसे या तो सरकारी कार्यालयोंके लिये लेखक ( क्लर्क ) पैदा करनेवाली या सिद्धान्तहीन पेटपूजा सिखानेवाली बनाकर रखना है । केवल उक्त दो प्रकारके लोग पैदा करना ही तो शिक्षाका आसुरीपन या आसुरी शिक्षानीति है। नैतिकताहीन शिक्षा ही अर्थकारी ( टका ढालनेवाली ) विद्याका मूल है । आज जो