Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 6
________________ की हो रही उपेक्षा के कारण वो अत्यंत व्यथित थे। इसलिए जीवन के अंतिम दिनों में भी समस्त जैन श्वेतांबर भव्यजीव महातीर्थ गिरनार की महिमा को पहचाने और योग्य न्याय मिले ऐसे साहित्य की रचना हो ऐसी भावना मेरे पास प्रकट की। उसी दिन उनका आशीर्वाद लेकर गिरनार महातीर्थ के विषय पर, एक दलदार ग्रंथ के प्रकाशन के लिए, संकल्पपूर्वक लेखन कार्य शुरु किया । आज तक अनेक पुस्तक आदि के अभ्यास से मिली हुई जानकारी को ग्रंथबद्ध करना शरू किया ही था उसमें गिरनार की वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखकर तात्कालिक, संक्षिप्त रूप में जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय की दृष्टि से, गिरनार की महिमा का वर्णन करनेवाली एक पुस्तिका लिखनी चाहिए ऐसी सूचना अनेक पूज्यों और श्रावक वर्ग की ओर से आयी। विविध ग्रंथों के वांचन द्वारा जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय की दृष्टि से गिरनार महातीर्थ की जो भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है उसके आधार पर इस तीर्थ के महाप्रभाव को लोकयोग्य भाषा में संक्षिप्त में वर्णन करने का अल्प प्रयास किया है। वाचक वर्ग का गिरनार महातीर्थयात्रा करने के उल्लास में ये पुस्तक विशेष रूप से वृद्धिकारक बने और सबके हृदय में तीर्थभक्ति की भावना को बढ़ाने के लिए सहायक बने । यही अभिलाषा । अंत में इस पुस्तिका के लेखन दरमियान सहायक बने हुए अनेक ग्रंथ आदि के लेखक - प्रकाशक आदि का मैं अत्यंत ऋणी हूँ। जिनाज्ञा के विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो क्षमा चाहता हूँ। इस पुस्तिका के वांचन द्वारा अनंत तीर्थंकरों की सिद्धभूमि की आराधना द्वारा आप सभी को भी सिद्धपद मिले इस मंगल मनोकामना के साथ विराम लेता हूँ। श्री नेमिनाथ दीक्षा कल्याणकदिन श्रावण सुद, ६ सं. २०६५ गिरनार तलेटी लि. भवोदधितारक गुरुपादपद्मरेणु मुनि हेमवल्लभ विजय

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