Book Title: Chalo Girnar Chale Author(s): Hemvallabhvijay Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh View full book textPage 5
________________ प्राक्कथन चौदह राजलोक में लोकोत्तर ऐसे जिनशासन के तीन भुवन में सर्वोत्कृष्ट तीर्थ रूप शत्रुजय और गिरनार महातीर्थ की गणना होती है। वर्तमान चतुर्विध संघ में तीर्थाधिराज श्री सिद्धगिरि महातीर्थ की महिमा सुप्रसिद्ध है लेकिन महामहिमावंत-महाप्रभावक श्री गिरनार महातीर्थ के माहात्म्य से सकल जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ लगभग अज्ञात है। इस कारण पिछले कितने सालों से जाने-अनजाने में भी इस महातीर्थ की उपेक्षा हो रही है यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है। आज जगप्रसिद्ध ऐसे शत्रुजय गिरिराज की यात्रा करने हर साल लाखों जैन श्वेतांबर भावक वर्ग जातें हैं. लेकिन वैसे ही जगप्रसिद्ध श्री रैवतगिरीराज गिरनार महातीर्थ की यात्रा करने हर साल मुश्किल से ५० हजार जैन श्वेतांबर भावुकजन जाते भारतभर के विविध धर्म-संप्रदायों में अपने-अपने धर्मग्रंथों में अनेक प्रकार से गिरनार महातीर्थ की महिमा का वर्णन किया गया है। आज हिन्दु समाज में वैष्णव, ब्राह्मण, शिवभक्त, रामभक्त, दत्तभक्त, अंबाभक्त, बौद्धभक्त आदि तथा जैन शासन में दिगंबर और श्वेतांबर धर्म संप्रदायों के अनेक भक्तजनों की श्रद्धा का प्रतिक यह गिरनार गिरिवर बना हुआ है। विविध धर्म संप्रदाय के गिरनार विषय में विविध माहत्म्य के कारण पूर्वकाल से, कितने ही स्थानों का हक और कब्जा लेने के लिए अनेक वाद-विवादों के तफानों के बीच में भी गढ गिरनार आज भी अडग बनकर खडा है। लाखों श्रद्धावंत भक्तजनों की शांति और समाधि का स्थान बना हुआ है। मेरे भवोदधितारक गुरुदेवश्री प.पू. पं. चंद्रशेखर विजयजी महाराज साहेब की भावना अनुसार सहसावन तीर्थोद्धारक, साधिक ३००० उपवास और ११५०० आयंबिल के घोर तपस्वी स्व. पूज्यपाद आचार्य हिमांशुसूरीश्वरजी महाराज साहेब की जीवन संध्या के १३-१३ वर्ष तक उनके शीतल सहवास में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। श्री शत्रुजय और गिरनार महातीर्थ के परम उपासक, अगाध शासनराग धारण करने वाले पूज्यपादश्री की शासन के विविध प्रश्नों की वेदनाओं को बहुत ही नजदीक से देखा है। जिसमें कितने ही वर्षों से जैन श्वेतांबर समाज द्वारा इस गिरनार महातीर्थPage Navigation
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