Book Title: Chahdhala Ka sara Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Digambar Jain Vidwatparishad Trust View full book textPage 5
________________ छहढाला का सार हमने ढालें तो छह-छह रखीं, पर तलवार एक भी नहीं रखी; क्योंकि हमें मारने का काम करना ही नहीं है। एक प्रश्न है कि 'प' का 'ष' बनाना हो, षटकोणवाला 'ष' बनाना हो अथवा 'व' का 'ब' बनाना हो तो क्या करें ? इस प्रश्न के उत्तर में क्षत्रिय कहेगा कि पेट चीर दो; लेकिन जैनी कहेगा पेट भर दो। क्रिया एक ही है, लेकिन उसे जैनी भरना बोलता है, चीरना नहीं बोलता । चीरने की भाषा, मार-काट करने की भाषा जैनियों की भाषा नहीं है। मोक्षमार्गप्रकाशक के समान इसमें भी सबसे पहले पहली ढाल में संसार के दुःखों का वर्णन है। मोक्षमार्गप्रकाशक के दूसरे अधिकार में संसार के दुःखों के कारण बताये हैं। इसकी भी दूसरी ढाल में दु:खी होने का कारण क्या है - यह बताया है। छहढाला को आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी तो छोटा समयसार कहा करते थे । यह छोटा समयसार सबकी समझ में आता है। और सभी को सहज भाव से स्वीकृत है। बहुत दिनों पहले की बात है, मैं एक जगह गया था, वहाँ एक संस्था चलायी जाती थी, जिसमें लड़कियाँ पढती थीं । वहाँ की अध्यापिकाओं ने मुझसे कहा - इन लड़कियों से आप कुछ पूछो, इनकी कुछ परीक्षा लो। मैंने कहा इसकी क्या जरूरत है ? आप इन लोगों को पढ़ाती हो तो इन्हें सब कुछ आता ही होगा। जब उन्होंने अति आग्रह किया तो मैंने एक प्रश्न किया - "छहढाला में किसकी कहानी है ?" मेरा यह प्रश्न सुनकर वे लड़कियाँ एक-दूसरे का मुँह देखने लगीं, अपनी अध्यापिकाओं का मुख देखने लगीं। सब तरफ चुप्पी छा गई। किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। (3) पहला प्रवचन एक हिम्मतवाली लड़की ने हाथ ऊपर उठाकर कहा - "साहब ! आपसे भी मेरा एक प्रश्न है। " मैंने कहा - "बोलो, आपका क्या प्रश्न है ? 19 उसने कहा - " आपने छहढाला पढ़ा है क्या ?" मैंने सोचा गजब हो गया। हम परीक्षा लेने चले थे, यहाँ तो परीक्षा देने की नौबत आ गई। मैंने कहा- "बहन ! तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?" तो उसने कहा - "छहढाला में कोई कहानी थोड़े ही है, वह तो अध्यात्म का ग्रन्थ है । वह प्रथमानुयोग थोड़े ही है कि जिसमें राम की, कृष्ण की, महावीर की कहानी हो। मुझे तो ऐसा लगता है कि आपने छहढाला पढ़ा ही नहीं और हमसे पूछते हैं कि इसमें किसकी कहानी है ? मैंने कहा – तुम ठीक कहती हो, मैंने शुरू के दो-तीन छन्द पढ़े थे, इसलिए ऐसा भ्रम हो गया है। उनमें लिखा था कि - तास भ्रमण की है बहु कथा, पै कछु कहूँ कही मुनि यथा । संसारी जीव की संसारभ्रमण की कहानी बहुत विस्तारवाली है; किन्तु मैं तो जिसप्रकार पहले मुनिराजों ने कही है, उसके अनुसार थोड़ी-बहुत कहूँगा । इसमें कविवर प्रतिज्ञा कर रहे हैं कि मैं उस कहानी को थोडी-बहुत कहता हूँ। कहानी तो बहुत लम्बी है, पूरी कहना तो संभव नहीं है; फिर भी थोडी-बहुत कहता हूँ। हमारे आचार्य भगवन्तों ने जैसी कही है, वैसी मैं कहता हूँ। मैंने सोचा यदि उन्होंने ऐसी प्रतिज्ञा की है तो कहानी भी कही होगी। - अरे भाई ! छहढाला में सभी जीवों की कहानी है; हमारी तुम्हारी सबकी, बहनों की, भाईयों की इस जगत् में जितने जीव हैं, उनPage Navigation
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