Book Title: Chahdhala Ka sara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Digambar Jain Vidwatparishad Trust

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Page 21
________________ छहढाला का सार अब हम शास्त्रीय दृष्टि से देखें तो पहले गुणस्थानवाले सुखी हैं या चौथे गुणस्थानवाले, चौथे गुणस्थानवाले ज्यादा सुखी हैं या पाँचवें गुणस्थानवाले, पाँचवें गुणस्थानवाले ज्यादा सुखी हैं या छठवें-सातवें गुणस्थानवाले? ___ अब यदि आप पहले गुणस्थान में हो तो फिर आपके दुःखों का कहना ही क्या है। मान लो सम्यग्दृष्टि भी हो तो भी तुम से वे असंख्यगुणे सुखी हैं और तुम्हें वे दु:खी दिख रहे हैं। तुम उनसे अनन्त गुणे दु:खी हो और तुम खुद को सुखी मान रहे हो । क्या यह संवरतत्त्वसंबंधी भूल नहीं है, निर्जरातत्त्वसंबंधी भूल नहीं है? आतमहित हेतु विराग ज्ञान, ते लखें आपको कष्टदान । रोकी न चाह निज शक्तिखोय, शिवरूप निराकुलता न जोय। जो वैराग्य और ज्ञान आत्मा के हित का हेतु था, उसे कष्ट देनेवाला मानता है। इच्छाओं का निरोध तो नहीं करता, अपितु उनकी पूर्ति में सुख मानता है और निराकुलतारूप जो मोक्षसुख है; उसे जानता नहीं है। बाप बेटे को समझाता है - बेटा ! अभी तकलीफ भोग लोगे तो फिर सुख पाओगे। अभी सुख भोगोगे तो बाद में दु:खी हो जाओगे। तकलीफ उठा लोगे अर्थात् रातभर ध्यान से पढ़ोगे-लिखोगे और बड़े ऑफिसर बन जाओगे तो जिंदगी भर सुख पाओगे । यह पढ़ना-लिखना क्या दुःख पाना है और आफिसर बनकर पाँचों इन्द्रियों की भोगसामग्री पाना क्या सुख पाना है ? अभी मौज-मस्ती करोगे, टी. वी. देखते रहोगे - इसप्रकार अभी सुख पाओगे तो चपरासी बनोगे, तकलीफ पाओगे, समझ लो। अब मैं आपसे पूछता हूँ - क्या यह बात सही है ? बीज डालोगे दुःख का और होगा सुख। इसीप्रकार बीज डालोगे सुख का और होगा दु:ख । क्या कभी ऐसा भी हो सकता है ? दूसरा प्रवचन अरे भाई ! जो अभी पढ़ने में आनन्द महसूस करेगा, वही अच्छे अंक पायेगा और उसे ही भविष्य में अनुकूलता प्राप्त होगी। जो व्यक्ति पढ़ाई में क्लेश अनुभव करता है; उसे न तो अच्छे अंक मिलते हैं और न भविष्य में अनुकूलता ही प्राप्त होती है। जो मुनिराज वर्तमान प्रतिकूलताओं में भी अपने अतीन्द्रिय आनन्द का अनुभव करेंगे; वे ही भविष्य में अनंत अतीन्द्रिय आनन्द प्राप्त करेंगे। जो व्यक्ति मुनिदशा को क्लेशरूप मानते हैं; वे संवर-निर्जरातत्त्व को सही नहीं समझते। वे लोग आत्मा के आश्रय से इच्छाओं को तो रोकते नहीं हैं और निराकुलता लक्षण मोक्ष को भी नहीं पहिचानते हैं। संसार के सुख से अनन्त गुणा सुख मोक्ष में मानता है; पर यह नहीं जानता कि संसार में सुख है ही नहीं तो फिर संसार के सुख से अनन्त गुणा का क्या अर्थ है ? शून्य में कितने का भी गुणा करो, अन्त में परिणाम तो शून्य ही आता है न। स्वर्ग में कम से कम ३२ देवांगनाएँ होती हैं; इसलिए वे सुखी हैं और चक्रवर्ती को ९६००० पत्नियाँ होती हैं, इसलिए वे सुखी हैं। ___ यदि मोक्ष में भी इसी से अनन्त गुणा सुख मानना है तो सिद्ध भगवान के कितनी पत्नियाँ माननी होगी? अरे भाई ! मोक्ष में इन्द्रियसुख संबंधी सुख नहीं है। अत: इस गुणनफल के व्यर्थ के व्यायाम से क्या लाभ है ? इसप्रकार सातों तत्त्वों सम्बन्धी अज्ञान-अश्रद्धा अग्रहीत मिथ्याज्ञान और अगृहीत मिथ्यादर्शन है। यह मिथ्यात्व अनादि का है। यह किसी कुगुरु ने हमें नहीं सिखाया है कि लडू खाने में मजा आता है। अनादि काल से हमारी पाँच इन्द्रियों के भोगों में सुखबुद्धि है। वस्तुत: बात यह है कि कोई व्यक्ति कुदेव, कोई शास्त्र कुशास्त्र (19)

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