Book Title: Chahdhala Ka sara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Digambar Jain Vidwatparishad Trust

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Page 36
________________ छहढाला का सार चौथा प्रवचन नहीं मिलता। यदि आपको भी रुचि जग गई तो सबकुछ ए. बी. सी. डी. से आरंभ करना होगा। छहढाला की क्लास में बैठना पड़ेगा। देशनालब्धि पहले होती है अर्थात् गुरु के मुख से सुनकर, शास्त्र पढ़कर सात तत्त्व और भगवान आत्मा समझ में पहले आता है और आत्मा की अनुभूति बाद में होती है। कानून बनने की एक प्रक्रिया है। पहले कानून के विशेषज्ञों से बिल बनवाया जाता है, फिर उसे प्रधानमंत्री केबिनेट में स्वीकृत कराता है। इसके बाद संसद में बहस होती है, बिल पास होता है। अन्त में उसे राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये भेजा जाता है। जब राष्ट्रपति उस बिल पर हस्ताक्षर कर देते हैं, तब वह बिल कानून बन जाता है। तात्पर्य यह है कि सारी प्रक्रिया प्रधानमंत्री सम्पन्न करता है; पर कानून राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से बनता है। इसीप्रकार सात तत्त्वों को समझने की सारी प्रक्रिया ज्ञान में सम्पन्न होती है; परन्तु आत्मानुभूतिपूर्वक श्रद्धा की स्वीकृति बिना सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान नहीं होता। सभी निर्णय प्रधानमंत्री करते हैं, संसद करती है, महिनों तक बहस होती है, अखबारों में लेख छपते हैं - यह सब वर्षों तक चलता है और राष्ट्रपति पूर्णत: निर्विकल्प बने रहते हैं। उसीप्रकार ज्ञान में संपूर्ण प्रक्रिया चलती रहती है। शास्त्रपठन, उपदेशश्रवण, तत्त्वमंथन, चिन्तन, चर्चा-वार्ता सबकुछ वर्षों तक चलता रहता है और राष्ट्रपति के समान श्रद्धा गुण पूर्णत: निर्विकल्प बना रहता है। जब ज्ञान में पक्का निर्णय हो जाता है; तब आत्मानुभूतिपूर्वक श्रद्धा गुण पर में से अपनापन तोड़कर अपने त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा में अपनापन स्थापित कर लेता है और सम्यग्दर्शन हो जाता है; उसी समय ज्ञान भी सम्यग्ज्ञानरूप हो जाता है। अब सम्यग्ज्ञान के भेद-प्रभेदों की चर्चा करते हैं - सम्यग्ज्ञान को प्रमाण कहते हैं और वह सम्यग्ज्ञान पाँच प्रकार का है - सुमति, सुश्रुत, सुअवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान । प्रमाण परोक्ष और प्रत्यक्ष के भेद से दो प्रकार का होता है। उक्त पाँच ज्ञानों में सुमति और सुश्रुत ज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं, सुअवधि और मन:पर्यय ज्ञान एकदेश प्रत्यक्ष प्रमाण हैं और केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष प्रमाण है। इनमें से मति और श्रुतज्ञान में इन्द्रिय और मन निमित्त होते हैं और अवधि व मनःपर्यय ज्ञान इन्द्रिय और मन के सहयोग के बिना द्रव्यक्षेत्र-काल-भाव की मर्यादा में स्पष्ट रूप से जानते हैं। सम्पूर्ण पदार्थों के अनन्त गुण और अनन्तानन्त पर्यायों को एक साथ अत्यन्त स्पष्ट रूप से केवलज्ञान जानता है। ___ जब केवलज्ञान में भूत, भविष्य और वर्तमान की सभी पर्यायों को जान लिया जाता है - ऐसी स्थिति में यह भी सुनिश्चित मानना होगा कि कौनसी पर्याय किस समय होगी। भूतकाल की पर्यायें तो हो चुकी हैं और वर्तमान की भी हो ही रही है; अत: उनके निश्चित मानने में तो कोई दिक्कत नहीं है; किन्तु भविष्य की पर्यायें तो अभी होना हैं; अत: उन्हें निश्चित मानने में ऐसा लगता है कि यदि भविष्य निश्चित है तो फिर हमारे हाथ में तो कुछ रहा ही नहीं। __ अरे भाई ! आदिनाथ भगवान ने तो यह बता दिया था कि यह मारीच का जीव अन्तिम तीर्थंकर महावीर होगा। चौथा काल एक कोड़ाकोड़ी सागर का होता है। मारीचि चौथे काल के प्रारम्भ में था और महावीर चौथे काल के अन्त में हुये हैं। इसप्रकार महावीर और मारीच में एक कोड़ाकोड़ी सागर का अंतर है। महावीर की माँ का नाम त्रिशला और पिता का नाम सिद्धार्थ होगा - आदिनाथ की दिव्यध्वनि में यह भी आ गया था। (34)

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