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छहढाला का सार
इसका अर्थ यह हुआ कि त्रिशला की शादी राजा सिद्धार्थ से होगी - यह बात एक कोड़ाकोड़ी सागर पहले ही निश्चित थी; अन्यथा आदिनाथ जानते कैसे ?
मान लो कि यह तो नक्की था कि सिद्धार्थ की शादी त्रिशला से होगी; पर किस दिन होगी - यह तो सिद्धार्थ के हाथ में ही होगा न । यदि वे चाहते कि मैं चार साल बाद शादी करूँगा तो ......।
अरे भाई ! भगवान महावीर का जीव सोलहवें स्वर्ग में था और उसकी आयु पूरी हो रही थी। यदि सिद्धार्थ सुनिश्चित समय पर शादी नहीं करते तो क्या होता ? उतने समय महावीर का जीव कहाँ रहता ? तात्पर्य यह है कि समय भी सुनिश्चित था और आदिनाथ के केवलज्ञान में जान लिया गया था। तात्पर्य यह है कि सबकुछ नक्की है।।
इसप्रकार की अनेकानेक भविष्यवाणियों से प्रथमानुयोग भरा पड़ा है। भविष्य निश्चित नहीं मानने पर सर्वज्ञता तो संकट में पड़ ही जायेगी, प्रथमानुयोग पर भी प्रश्नचिह्न लग जायेगा। ___ हम यह तो सहजभाव से स्वीकार कर लेते हैं कि केवली भगवान भविष्य की सभी बातें जान लेते हैं, पर हमारा मन यह स्वीकार नहीं कर पाता कि भविष्य में होनेवाली घटनायें भी सुनिश्चित हैं; क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि सबकुछ नक्की है तो फिर हमने क्या किया। वस्तुतः बात यह है कि हम अपने कर्तृत्व के अभिमान को नहीं छोड़ना चाहते।
आत्मा के कल्याण में यह कर्तृत्व का अभिमान ही सबसे बड़ी बाधा है। न केवल जैनधर्म में, अपितु लगभग सभी दर्शनों में इस कर्तृत्व के अभिमान पर चोट की गई है।
हिन्दू कहते हैं कि राम की मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता, मुसलमानों के यहाँ भी खुदा की मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता और ईसाईयों के पत्ते गॉड हिलाता है।
सभी धर्म वाले यह तो कहते ही हैं कि तेरे हाथ में कुछ नहीं है।
चौथा प्रवचन 'हुइये वही जो राम रचि राखा।' राम ने जो सोच रखा है, होगा तो वही । तेरे करने से कुछ नहीं होगा। ___ यह जो कर्तृत्व का अभिमान है, वह सबसे बड़ी समस्या है। सभी धर्मवाले इस अभिमान को तोड़ना चाहते हैं। हिन्दू धर्म में तो आता है कि भगवान भक्त का सबकुछ बर्दाश्त कर सकते हैं, भक्त उनकी छाती पर लात मार दें तो भी बर्दाश्त कर सकते हैं; लेकिन भक्तों के कर्तृत्व का अभिमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। मेरी यह बात सुनकर एक लड़का बोला -
“आप कुछ भी कहो, पर हम तो लड़की को अच्छी तरह देखे बिना शादी नहीं करेंगे। जब हम दस रुपये की हाँडी खरीदते हैं तो ठोक-बजाकर लेते हैं; यह तो जिन्दगी भर का सौदा है।" ____ मैंने प्रेम से समझाते हुए उससे कहा - ___"क्या माँ-बाप का संबंध जिन्दगी भर का नहीं है। यदि है तो तुमने यह काली-कलूटी माँ कैसे पसन्द कर ली ?"
तब वह कहता है - "इसमें मेरी क्या गलती है ? यह तो पापा की गलती है।" मैंने कहा - "यह गलती पापा की ही सही, पर तू बालबच्चे तो एक से एक बढ़िया चुन-चुनकर पैदा करना।"
“वे भी जैसे होंगे, हो जायेंगे, उसमें भी मैं क्या कर सकता हूँ ?"
"माँ-बाप, भाई-बहन, बेटा-बेटी जैसे मिल जायें, चलते हैं; पर एक पत्नी ही ऐसी है कि जिसमें तू अपनी पूरी अक्ल लगा लेगा।"
बात को आगे बढ़ाते हुये मैंने कहा – “जाओ बेटा ! देख आओ। मात्र देखना, ठोकना-बजाना नहीं; नहीं तो ठुक-पिटकर आओगे। अपनी पत्नी की तुलना दस रुपये की हांडी से करते हो, शरम नहीं आती।
जिन्होंने शादी होने के पहिले पत्नी को देखा भी नहीं था, ऐसे भी लोग अभी जिंदा हैं। उनकी जिंदगी बहुत शान्ति से निकल गई; पर ठोंक-बजाकर देखनेवालों की जिंदगी दो-चार साल भी नहीं चल
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