Book Title: Chahdhala Ka sara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Digambar Jain Vidwatparishad Trust

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Page 46
________________ छहढाला का सार पाँचवाँ प्रवचन हम निशदिन मरते रहते हैं। दिनरात गुजरते रहते हैं, हम निशदिन मरते रहते हैं। उत्पाद-नाश जब एक वस्तु तब क्योंकर मृत्यु से डरना; अरे जन्म से खुशी और यह मृत्यु देखकर रो पड़ना ।। यह परम सत्य स्वीकार नहीं, हम किस विचार में रहते हैं; दिन-रात गुजरते रहते हैं, हम निशदिन मरते रहते हैं।। कुछ लोग कहते हैं कि बार-बार मृत्यु की चर्चा करके हमारा यह सुखमय जीवन क्यों खराब कर रहे हैं। अरे भाई ! जब मरेंगे, तब मर जायेंगे; अभी तो मौजमस्ती से रहने दो, प्राप्त सुखों को शांति से भोगने दो। उनसे कहते हैं कि भाई ! इस असार संसार में सुख है ही कहाँ ? यहाँ तो दुःख ही दुःख है, रंचमात्र भी सुख नहीं है। यह बात तो पहली ढाल में ही स्पष्ट कर आये हैं। संसार भावना की चर्चा करते हुये इस छहढाला में भी यही कहा है - चहुँगति दुःख जीव भरे हैं, परिवर्तन पंच करे हैं। सब विधि संसार-असारा, यामैं सुख नाहिं लगारा ।। चारों गतियों में सर्वत्र दुःखी जीव ही भरे हुये हैं, जो निरन्तर पंच परावर्तन कर रहे हैं। यह संसार सम्पूर्णतः असार है; इसमें रंचमात्र भी सुख नहीं है। कविवर पण्डित भूधरदासजी ने भी संसार भावना में यही कहा है, जो इसप्रकार है - दाम विना निर्धन दुखी, तृष्णावश धनवान । कबहु न सुख संसार में सब जग देख्यो छान ।। गरीब पैसों के बिना दु:खी है और धनवान तृष्णा के वश होकर दुःखी हो रहे हैं। हमने सारे संसार को छान मारा है; इसमें कहीं भी सुख दिखाई नहीं देता। कविवर पण्डित भूधरदासजी द्वारा रचित वैराग्यभावना में संसार की स्थिति का जो चित्रण किया गया है; वह इसप्रकार है - सुरगति में परसम्पति देखे राग-उदय दुख होई। मानुष योनि अनेक विपतिमय सर्वसुखी नहिं कोई।। कोई इष्ट-वियोगी बिलखै कोई अनिष्ट-संयोगी। कोई दीन दरिद्री बिगूचे, कोई तन के रोगी ।। किस ही घर कलिहारी नारी के बैरी सम भाई। किस ही के दुख बाहिर दीखै किस ही उर दुचिताई।। कोई पुत्र बिना नित झूरै होय मरै तब रोवै । खोटी संतति सों दुख उपजै क्यों प्राणी सुख सोवै? पुण्य उदय जिनके तिनके भी नाहिं सदा सुख साता । यह जगवास जथारथ देखे सब दीखै दुखदाता ।। जो संसार विर्षे सुख हो तौ तीर्थंकर क्यों त्यागें? काहे को शिव-साधन करते संजम सौं अनुरागैं? राग के उदय से देवगति में दूसरों की सम्पत्ति को देख-देखकर दुःख होता है और मनुष्ययोनि में भी अनेक विपत्तियाँ हैं। यहाँ पूर्णत: सुखी कोई नहीं है। ___ कोई इष्ट के वियोग में बिलख-बिलखकर रो रहा है तो कोई अनिष्ट के संयोग से दु:खी है। कोई दीन-दरिद्री होने से दु:खी है तो कोई का शरीर रोगग्रस्त है। किसी के घर में नित्य कलह करनेवाली पत्नी है तो किसी के घर में शत्रु के समान व्यवहार करनेवाला भाई है। किसी-किसी के दुःख बाहर से दिखाई देते हैं तो किसी के हृदय में अनेक प्रकार की दुश्चिन्तायें लगी हुई हैं। ___कोई व्यक्ति पुत्र नहीं होने से दु:खी है, निरन्तर झूरता रहता है, किसी का पुत्र होने पर भी मर जाने से वह रो रहा है और किसी के संतान

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