Book Title: Chahdhala Ka sara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Digambar Jain Vidwatparishad Trust

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Page 26
________________ छहढाला का सार तीसरा प्रवचन हो जायेगा - ऐसा मानते हैं। तीसरे नंबर के वे जो हम तो यहीं पर सुखी हैं, मोक्ष में जाने की क्या जरूरत है? जो लोग यह कहते हैं कि मोक्ष के बिना भी सुख है, माने स्वर्गों में सुख है और अमेरिका में सुख है, पैसों में सुख है; वे मूर्यों के सरदार हैं। जिनको यह समझ में आया हो कि चारों गतियों में दुःख ही दुःख हैं, संसार में सुख है ही नहीं, उन्हें मोक्ष के मार्ग में लगने के लिए यह बात कही जाती है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण शिव मग सो द्विविध विचारो। सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की एकता मोक्षमार्ग है और उस मोक्षमार्ग को समझने के लिए दो तरह से विचार करना चाहिए। उक्त सन्दर्भ में टोडरमलजी लिखते हैं - "मोक्षमार्ग दो नहीं हैं, मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार का है। जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग निरूपित किया जाये, वह निश्चय मोक्षमार्ग है और जो मोक्षमार्ग तो नहीं है, परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त है व सहचारी है, उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाये, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है।” ये पंक्तियाँ मोक्षमार्गप्रकाशक के सातवें अधिकार के उभयाभासी के प्रकरण में हैं। निश्चय मोक्षमार्ग तो मात्र इतना ही है कि परद्रव्यों से भिन्न अपने आत्मा को निजरूप जानना सम्यग्ज्ञान है, उसी में अपनापन स्थापित होना सम्यग्दर्शन है और उसी में लीन हो जाना, समा जाना सम्यक्चारित्र है। उक्त सन्दर्भ में निम्नांकित छन्द अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है - परद्रव्यन तैं भिन्न आप में रुचि सम्यक्त्व भला है। आपरूप को जानपनो सो सम्यक् ज्ञान कला है ।। १. मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ : २४८ आपरूप में लीन रहे थिर सम्यक चारित सोई। अब व्यवहार मोक्षमग सुनिये हेतु नियत को होई ।। परद्रव्यों से भिन्न अपने आत्मा में रुचि सम्यग्दर्शन है, अपने स्वरूप को जानना ही सम्यग्ज्ञान है और अपने स्वरूप में लीन होना ही चारित्र है - यह निश्चय मोक्षमार्ग है। तात्पर्य यह है कि अपने आत्मा को जानकर उसी में अपनापन कर, उसी में समा जाना वास्तविक धर्म है; शेष सब व्यवहार है। इसके बाद पूरी ढाल में व्यवहार सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र का ही वर्णन है। ___ उक्त निश्चय के प्रतिपादन में आत्मा की रुचि, आत्मा का जानना और आत्मा की लीनता - इन तीनों में आत्मा ही मुख्य है; इसलिये उक्त मोक्षमार्ग को प्रगट करने के लिये आत्मा को जानना बहुत जरूरी है। सारी दुनिया को जाना और आत्मा को नहीं जाना तो समझ लेना कुछ नहीं जाना । कहा भी है - जाना नहीं निज आत्मा ज्ञानी हुये तो क्या हुये। ध्याया नहीं निज आत्मा तो ध्यानी हुये तो क्या हुये ।। तीन लाईनों में तो निश्चय की बात करके चौथी लाईन में कह दिया कि अब व्यवहार मोक्षमार्ग के बारे में सुनो, जो निश्चय का हेतु है, साधन है, कारण है। प्रश्न : निश्चय से तो मात्र अपने आत्मा को ही जानना है; पर व्यवहार में तो सात तत्त्वों को जानने की बात कही गई है, देव-शास्त्रगुरु को जानने की बात कही गई है। इनको जाने कि नहीं ? उत्तर : यदि अपनी आत्मा को जानना है तो यह भी जानना पड़ेगा कि जिसे मैं आजतक आत्मा जानता रहा हूँ, वह क्या है ? आत्मा से भिन्न जो कुछ भी इस जग में है, उसे एक शब्द से कहना हो तो अनात्मा (24)

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