Book Title: Chahdhala Ka sara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Digambar Jain Vidwatparishad Trust

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Page 24
________________ ४२ छहढाला का सार तीसरा प्रवचन बताये परहेज पालता है, दवा लेता है और भी जो कुछ वैद्य आदेश देता है, उसका पालन करता है। इसीप्रकार यहाँ संसारी जीव को पहले संसार के दुःख बताये, उन दुःखों के कारण बताये और अब उन दुःखों से बचने का उपाय बताते हैं; जिन्हें वह न केवल सुनेगा, समझेगा; अपितु उन्हें क्रियान्वित भी करेगा। ___ एक दिन एक मरीज एक वैद्य के पास आया और रो-रोकर कहने लगा - मेरे पेट में भयंकर पीड़ा है। वैद्यजी ने उससे पूछा - गुड़ खाया था ? उसने कहा - नहीं खाया । वैद्यजी ने फिर पूछा - नहीं खाया? उसने कहा - हाँ साहब ! नहीं खाया। उन्होंने फिर पूछा - नहीं खाया ? उसने फिर बताया - नहीं खाया । तो नाराज होते हुए वैद्यजी बोले - मेरे सामने से हट जा । वैद्यजी ने उसे बहुत डाँटा । वह बेचारा हाथ-पैर जोड़ रहा था। ___ यह एक सत्य घटना है और मैं वहाँ उपस्थित था। वे वैद्यजी मेरे अभिन्न मित्र थे। अत: मैंने उनसे कहा - तुम बहुत निर्दयी हो । बेचारे को इतनी तकलीफ है और तुम डाँट रहे हो। उन्होंने कहा - आप समझते नहीं तो बीच में क्यों बोलते हो। यह मेरा पुराना मरीज है। इसे पहले जो तकलीफ हुई थी, मैंने उसका इलाज किया था और इसको कह दिया था कि अब तुम जिंदगी में कभी भी तेल और गुड़ मत खाना । नहीं तो तुझे ऐसी ही भयंकर तकलीफ होगी। आज यह दुबारा आया है। इसने गारंटी से गुड़ और तेल खाया है। बिना उसके यह तकलीफ हो ही नहीं सकती है। तब मैंने कहा - जब वह कसम खाकर मना कर रहा है कि उसने नहीं खाया, नहीं खाया, नहीं खाया; तब तो आपको विश्वास करना चाहिए। उन्होंने कहा - नहीं, मैं नहीं मान सकता। बिना बदपरहेजी के यह तकलीफ होती ही नहीं है। मुझे यह जानना बहुत जरूरी है कि इसने गुड़ खाया था या नहीं, तेल खाया था या नहीं। यदि यह सही बता देवें कि खाया था तो वही दवाई देनी पड़ेगी और नहीं खाया था तो दवाई बदलनी पड़ेगी। दवाई देने के पहले यह जानना बहुत जरूरी है और यह बता नहीं रहा है। तब मैंने उस मरीज को समझाकर कहा कि तू सच बोल दे कि तूने गुड़ व तेल खाया था कि नहीं। तब उसने हाथ जोड़कर कहा - साहब ! न मैंने गुड़ खाया, न मैंने तेल खाया, मैंने तो गुलगुले खाये थे। गुलगुले आटे में गुड़ डालकर तेल में पकाये जाते हैं। तब वैद्यजी ने कहा - अब कोई तकलीफ नहीं है, यह पुड़िया ले जा, दो दिन में ठीक हो जायेगा। अब भविष्य में गुड़ नहीं, गुलगुले भी नहीं, किसी भी रूप में ये गुड़ और तेल तेरे खाने में नहीं आना चाहिए। __ऐसे ही यहाँ पर कह रहे हैं कि हमने तेरी तकलीफ बताई। यह भी बताया कि यह तुझे क्यों हुई है। गृहीत और अगृहीत मिथ्यादर्शनज्ञान-चारित्र का सेवन किया है; इसलिए यह तकलीफ हुई है। बोल तूने इनका सेवन किया है या नहीं किया है ? नहीं ! साहब सिर कट जाये, लेकिन किसी भी कुदेवादिक के सामने मेरा माथा नहीं झुके। भैया ! इसके बिना यह तकलीफ हो ही नहीं सकती थी। चार गति और चौरासी लाख योनियों का परिभ्रमण मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र के सेवन के बिना हो ही नहीं सकता है। अभी तक तो मरीज की सिर्फ जाँच हुई है। अरे भाई ! हम जानते हैं कि तुम दु:खी हो और दु:खी क्यों हो - यह भी जानते हैं। अब तुम्हें हमारी बात पर भरोसा हो तो हम दुःख मेटने का उपाय बताते हैं। ध्यान से सुनो। (22)

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