Book Title: Buddhiprabha 1913 12 SrNo 09 Author(s): Adhyatma Gyan Prasarak Mandal Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 4
________________ १७४ भुमिमा आठ पहोर तुं धसमसी, धन (कारण) देशांतर जाय । सो धन मेल्युं ताहरूं, ओरज कोइ खाय ।। ३४ ॥ आंखतणे फरुकडे, उथलपाथल थाय । इशु जाणी जीव बापडा, म करीश ममता माय ॥ ३५ ॥ माया सुख संसारमां, ते सुख सही असार । धर्म पसाइ सुख मली, ते सुख न आवे पार ॥ ३६ ॥ नयन फरके जिहां लगे, तिहां ताहरु सहु कोय । नयन फरुकत जब रही, तब आथ ओरज कोय ॥ ३७॥ पाप कीया जीऊ ते बहु, धर्म न कीओ लगार । नर्क पडयो जमकर चढयो, पडयो तिहां करे पोकार ।। ३८ ॥ को दन राणो राजीओ, को दन भयो तुं देव । को दिन रांक तुं अवतर्यो, करतो ओरज सेव ॥ ३९ ॥ को दिन कोडी परखर्यो, को दिन नहि को पास । को दिन घर घर एकलो, भम्यो सही युं दास ॥ ४० ॥ को दिन सुखासन पालखी, जलमची चकडोल। रथपाला आगल चले, नित्य नित्य करत कलोल ॥४१॥ को दिन कूर कपूर तुं, भावत नहीं लगार । को दिन रोटी कारणे, भमे ते घर घरवार ॥ ४२ ॥ हीर चीर अंगज पहिरीयां, चुआचंदन बहु लाय । सोतन जतन करत भयो, खीणमांही विघदाय ॥ ४३ ॥ सातमी गोख तुं शोभतो, कामनी भोगविलास । एक दिन ओहि आविसि, रहणोहि वनवास ॥४४॥ रुपी देवकुमार सम, देखत मोहे नरनार । सो नर खीण एकमां वली, वली जली होवे छार ॥ ४५ ॥ जे विना घडीय न जायती, सो वरसासो जाय । ते वल्लभ विसरी गयो, ओर सुं चीतवे छार ॥ ४६॥ वेखत सब जग जातु हे, थिर न रहेवे कोय । इसु जाणी भलं कीजीए, हीये विमासी जोय ॥४७॥ सुरपति सवे सेवा करे, राय राणा नरनार ! आयप होती आतमा, जातां न लागे वार ।। ४८ ॥ देखत न अंधा हुआ, जे वीट्या मोहजाल । भण्या गण्या मूरख वली, नरनारी बालगोपाल ।। ४९ ॥Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36