Book Title: Buddhiprabha 1913 12 SrNo 09 Author(s): Adhyatma Gyan Prasarak Mandal Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 3
________________ વર્ષ ૫ સુ બુદ્ધિપ્રભા (The Light of Reason) ब्रह्मानन्दविधान के पतरं शान्तिग्रहद्योतकम् । सत्यासत्यविवेकदं भवभयभ्रान्तिव्यवच्छेदकम् ॥ मिथ्यामार्गनिवर्तकं विजयतां स्याद्वादधर्मप्रदम् । लोके सूर्यसमप्रकाशकमिदं 'बुद्धिप्रभा' मासिकम् ॥ તા. ૧૫ ડીસેમ્બર સન ૧૯૧૩ प्राचीन गुर्जरभाषामां जैन साहित्य. आत्मशिक्षा. #दोदरा. ( संशोधक जैनाचार्य योगनिष्ट बुद्धिसागरसूरिजी . ) आपस्वरूप विचार तुं, जो होए हिइडे सान | करणी तेहवी कीजीए, जिम वाधे जगवान ॥ २८ ॥ वडपण धर्म थाइ नहीं, जोवन एलि जाय । वचवेगल धसमस करी, पछी फरि पस्ताय ॥ २९ ॥ जरा आवी योवन गयो, शिर पलिया ते केश । ललता तो छंडी नहीं, न कर्यो धर्म लवलेश ॥ ३० ॥ पंचेद्रि जिहां पडवडां, रोम जरा नावंत | योवन विचली आवे सदा, करो धर्म माहांत ॥ ३१ ॥ ती हाथ न वावरलो, संबल न कियो साथ । आध गइ चीतीयो, पछे घसे निज हाथ ॥ ३२ ॥ धन जोबन नर रूपनो, गर्व करे ते गमार । कृष्ण बलभद्र द्वारिका, जाता न लागी वार ॥ ३३ ॥ भा * श्री वात्मशिक्षा नामक लघु राज्यना कर्ता श्री विजयसेनसूरिना वखतमा विद्यमान हता. लगभग aणसो वर्ष पूर्वे जैन कविनी गुजराती भाषा अने तेनो सार बाचकोने समजाय ते माठे मासिकमां तेनो उतारो करवामां आव्यो छे. तेना कर्ता कोण छे ते छेवटे दर्शाव्युं छे. अमदावाद झषेरीवाडी, लहेरीया पोळना रहीश श्रोता पानाचंदभाइ के जे थोडा वर्ष पर मृत्यु पान्या छे. जैमनी पासेथी अक टीपणुं मळ्युं हतुं, तेमांची मात्र उतारो करवामां आव्यो छे.Page Navigation
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