Book Title: Brihatkalpa Sutra Prastavik Author(s): Punyavijay Publisher: Punyavijayji View full book textPage 6
________________ ७२ ] (ख) तुंबवरण सन्निवेसा, निग्गयं पिउसगास मल्लीगं । छम्मासि छसु जयं, माऊयसमन्नियं वंदे ॥। ७६४ ॥ जो गुज्झएहिं बालो, निमंतिप्रो भोयणेण वासंते । च्छ विणीयविरणओ, तं वइररिसि णमंसामि ।। ७६५ ।। उज्जेणीए जो जंभगेहिं, आरणक्खिऊरण थुयमहिो । अक्खी महारणसियं, सीहगिरिपसंसियं वंदे ॥ ७६६ ॥ जस्स अण्णाए वायगत्तणे दसपुरम्मि यरम्मि । देवेहिं कया महिमा, पयाणुसारि णमंसामि ॥ ७६७ ॥ जो कन्नाइ धरणय, रिणमति जुव्वणम्मि गिहवइरणा । नयरम्मि कुसुमनामे, त्तं वइररिसिं णमंसामि ॥ ७६८ ॥ जेरिया विज्जा, श्रागासगमा महापरिणा । वंदामि अजवरं, अपच्छिमा जो सुयहराणं ॥ ७६६ ॥ * (ग) अपुहुत्ते अणुप्रोगो, चत्तारि दुवार भासई एगो | पुत्ताणुओकरणे, ते अत्थ तो उ वोच्छिन्ना ॥ ७७३ ॥ देविंद दिएहिं महाणुभागेहिं रक्खिनज्जेहिं । जुगमासज्ज विभत्तो, ऋणुग्रोगो तो कम्रो चउहा ।। ७७४ ।। माया य रूहसेामा, पिया य नामेण सोमदेव, त्ति । भाया य फग्गुरक्खिय, तोसलिपुत्ता य आयरिश्रा ॥ ७७६ ॥ निज्जवणभद्दगुत्ते, वीसु पढणं च तस्य पुब्वगय । पव्वावियो य भाया, रक्खिअखमणेहिं जो य ।। ७७७ ।। * Jain Education International (ध) बहुरय-पएस - प्रव्वत्त- समुच्छ दुग-तिग-प्रबद्धिगा चेव । सत्ते पहिगा खलु, तित्थम्मि उ वद्धमारणस्स ।। ७७८ ॥ बहुरयजमालिपभवा, जीवपएसा य तीसगुत्ता । प्रवत्ताऽऽसाढाओ, सामुच्छेयाऽऽसमित्ताश्रो ।। ७७६ ॥ गंगाओ दो किरिया, छलुगा तेरासियाण उप्पत्ती । थेरा य गो माहिल, पुट्ठमबद्ध परूविति ॥ ७८० ।। सावत्थी उसभपुरं, सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं । पुरिमंतरंजि दसपुर, रहवीरपुरं च णयराई ॥ ७८१ ॥ चास सालस वासा, चास वीसुत्तरा य दोणि सया । अट्ठावीसा यदुवे, पंचेव सया उ चोयाला ॥ ७८२ ॥ For Private & Personal Use Only # જ્ઞાનાંજલિ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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