Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 8
________________ (VI) हम विदेशी विद्वानो के इस बात के लिए कृतज्ञ हैं कि उन्होंने भारतीय विद्वानों को आधुनिक शोध की दृष्टि से भारतीय विषयों का अनुसंधान किया। अनुसंधान के फलस्वरूप उन्होंने अपनी मान्यताएं विद्वत् समाज के सम्मुख प्रस्तुत की हैं। यह बात दूसरी है कि उनकी अधिकांश स्थापनाएं भ्रम की भीत पर स्थिर हैं। फिर भी हम उनके परिश्रम की सराहना तो करते ही हैं। प्रारंभ में अंग्रेजी भरमार के चकाचौंध के कारण भारतीय अनुसंधित्सुओं के अनुसंधान का आधार विदेशी स्थापनाएं हुआ करती थीं, इसीलिए उनके द्वारा भी कुछ भ्रम अस्तित्व में आ जाया करते थे। भगवान महावीर स्वामी की जन्मभूमि कल्पसूत्र में निश्चित ने के बावजूद देशी-विदेशी विद्वानों ने वैशालिक नाम के आधार पर क्षत्रियकुंड जन्मभूमि मानने से इन्कार कर दिया और अनुमान तर्क आदि के आधार पर क्लिष्ट कल्पना कर वैशाली hat जन्मभूमि सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। फलतः इस प्रश्न को जानबूझकर विवाद का विषय बना दिया। हर्ष की बात है कि पंडित हीरालाल शास्त्री दुग्गड़ ने महावीर स्वामी की जन्भूमि संबंधी सभी मतों का विस्तार से खंडन कर 'कल्पसूत्र के पक्ष की अर्थात् महावीर स्वामी की जन्मभूमि क्षत्रियकुंड प्रस्तुत पस्तक में सिद्ध कर दिया है। इस सम्बन्ध में आपने वैज्ञानिक दृष्टि तर्क युक्त पांडित्य और आगमों का सहारा लेकर सत्यता का जोरदार प्रतिपादन किया है। इस संबंध में शास्त्री जी ने अब किसी प्रकार की शंका के लिए गंजाइश नहीं रखी है। विदेशी विद्वानों ने विशेषकर जकोबी ने जन्मभूमि पर ही प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया था बल्किं कल्पसूत्र की अनेक मान्यताओं का भी खंडन किया है। वह सिद्धार्थ को राजा और त्रिशला को रानी नहीं मानता है। कुंडग्राम को वह वैशाली का एक मोहल्ला कहता है। भगवान महावीर को वह वैशाली का निवासी सिद्ध करता है। इन सभी भ्रांतियों का श्री दग्गड़ जी ने भली भाँति निराकरण किया है। 1 इस शोध ग्रंथ में विदेशी विद्वानों के मतों का ही खंडन नहीं है, बल्कि भारतीय विद्वानों की भ्रान्त धारणाओं का भी खंडन किया गया है। यही नहीं जिन जैन मुनियों ने पाश्चात्य धारणा के अनुसार या अन्य किन्हीं कारणों से वैशाली को महावीर स्वामी की जन्मस्थली माना है, उनका भी इस शोध ग्रंथ में निराकरण हुआ है। यद्यपि प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य प्रतिपाद्य विषय भगवान् महावीर स्वामी का जन्मस्थान 'क्षत्रियकंड' सिद्ध करना है, तथापि इस निमित्त से भगवान् महावीर के जीवन संबंधी अनेक ज्ञातव्य विषयों, महावीर स्वामी के परिवार और नजदीकी रिश्तेदारों का भी परिचय दिया गया है। भगवान् महावीर की जन्म कुंडली प्रस्तुत की गई है। ज्यौतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली के सभी ग्रहों का फल देकर उनका मिलान भगवान् महावीर स्वामी के जीवन में घटने वाली घटनाओं से किया गया है और दोनों की समानता सिद्ध की गई है। इसी प्रकार अन्य बहुत-सी बातें इस शोधग्रंथ में लिखी गई हैं।

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