Book Title: Bhagwan Mahavir ka Janmasthal Kshatriyakunda Author(s): Hiralal Duggad Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi View full book textPage 7
________________ (V) प्रस्तावना चरम तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी ने जैनधर्म के चतुर्विध संघ को व्यवस्थित कर विश्वधर्मो में उसे गौरवान्वित किया है। उन्होंने अर्धमागधी (तत्कालीन लोक भाषा) के माध्यम से जैनागमों पर प्रवचन दिया। उनकी देवाना इतनी व्यापक थी कि जैनसमाज के बाहर भी उनकी कीर्ति कौमुदी से सारे संसार ने शीतल प्रकाश प्राप्त किया। उनके महत्कार्यों और व्यापक प्रवचनों से एक प्रांति भी फैली कि जैन धर्म के प्रवर्तक श्री महावीर स्वामी हैं। बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध महावीर स्वामी के समकालीन थे, इसलिए भी उन्हें जैन धर्म का प्रवर्त्तक माना गया। साधारण जनता ही इस भ्रम मे भ्रमित नहीं हुई इतिहास कारों को भी तथ्य का पता न होने से इस भ्रम का समर्थन करना पड़ा है। इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में भी यह भ्रम दुहराया जाता है कि महावीर स्वामी जैनधर्म के प्रवर्तक थे, जब कि तथ्य यह है कि भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान पार्श्वनाथ तक उनके पूर्ववर्ती तेईस तीर्थकर हो चुके हैं। भगवान् ऋऋषभ देव से पूर्व भी जैन धर्म अस्तित्व में था, इसका प्रमाण ऋग्वेदादिक प्राचीनतम वैदिक ग्रंथो मे लेकर परवर्ती वैदिक पुराणों में भी पाया जाता है। वैदिक ग्रंथों की यह बात बहुत प्रसिद्ध है कि हिरण्यक गर्भ ब्रह्मा ने अपने सनक, सनन्दनादि मानस पुत्रों से प्रजा धर्म चलाने का आदेश दिया किन्तु उन्होंने इसे पशु कर्म कह कर त्याज्य माना और वनवासी बनकर श्रमण धर्म अपनाया। सनकादि बड़े ज्ञानी पुरुष थे। एक बार तो जब उनकी शंकाओं का समाधान उनके पिता ब्रह्मा जी नहीं कर सके तो परमात्मा ने हंसावतार लेकर उनका समाधान किया। वैष्णवों का निम्बार्क संप्रदाय हंसावतार को ही अपना आदि पुरुष मानता है। 'अतः वैदिक ग्रंथों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो भी यह आसानी से सिद्ध होता है कि वैदिक और श्रमण दोनों संस्कृतियां एक साथ उत्पन्न हो कर विकसित हुई और आज तक समानान्तर चली आ रही हैं। अतः यह भी कहना आधारहीन है कि वैदिकों के हिंसात्मक यज्ञों की प्रतिक्रिया के रूप में श्रमणधर्म अर्थात् जैन धर्म की उत्पत्ति हुई है। जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक बागम में कल्पसूत्र का बड़ा महत्व है। इसमें कुछ अन्य तीर्थकरों के संक्षिप्त जीवन चरित्र तो हैं ही भगवान् महावीर स्वामी का जीवन अपेक्षाकृत विस्तार से दिया गया है। कुंडग्राम के दो भार्ग थे, ब्राह्मणकुंड और क्षत्रियकुंड भगवान् महावीर स्वामी का च्यवन ब्राह्मण कुंड में रहने वाली ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ में हुबा था, बाद में शिशु महावीर को क्षत्रिय कुंड में रहने वाले राजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशलादेवी के गर्भ में स्थापित कर दिया गया। इस दृष्टि से भगवान् महावीर स्वामी की जन्मस्थली ब्राह्मण कुंड और क्षत्रियकुंड दोनों हैं। परन्तु वे त्रिशला के गर्भ से प्रसूत होकर क्षत्रियकुंड में अवतरित हुए इसलिए उनकी जन्मभूमि क्षत्रियकुंड ही मानी जाती है।Page Navigation
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