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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा बनता है, उसे अपोह कहते हैं। बौद्ध-दार्शनिक कहते हैं कि अन्यों की व्यावृत्ति करने से अन्त में जो बचता है, या अनुभव में आता है, उस अनुभव को ही हम 'अपोह कहते हैं। अपोह में मात्र अन्य का निषेध ही नहीं होता है, अपितु उस निषेध के साथ ही उसके विधि-पक्ष का भी ग्रहण होता है। हम वस्तु को ही नहीं, किंतु वस्तु में जो अर्थक्रियाकारित्व-गुण है, उसको अपोह कहते हैं। 232
इस पर, आचार्य रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि यह अपोह ही शब्द का अर्थ है, वस्तु (पदार्थ) शब्द का अर्थ नहीं है- ऐसा आप (बौद्ध) का कथन क्या मिथ्या या अनुचित नहीं है ? क्योंकि आप जो यह कहते हैं कि पदार्थ में एक ही अर्थक्रियाकारित्व-गुण है, आपका यह कथन कैसे माना जाए ? आप जो कहते हैं कि घट में जलधारण करने की यह एक ही अर्थक्रिया का गुण है, जबकि यह प्रसिद्ध तथ्य है कि घट में मात्र जल-धारण की ही क्रिया नहीं होती है, बल्कि घट घृत, तेल, अनाज आदि को भी धारण करता है। इस प्रकार, एक ही वस्तु अनेक अर्थक्रिया करने की योग्यता रखती है, अर्थात् एक ही वस्तु में अनेक अर्थक्रियाकारित्व का गुण रहा हुआ है। 233
जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्धों से प्रश्न करते हैं कि यदि आप वस्तु में एक ही अर्थक्रियाकारित्व की शक्ति मानेंगे, तो फिर क्या गाय और बैल की अर्थक्रिया में भी एकरूपता मानेंगे ? भार वहन करने वाले बैल को क्या गाय कहेंगे ? और दूध देने वाली गाय को क्या बैल कहेंगे ? अतः, आप एकरूपता या एकत्व किसको कहेंगे ? क्या दोनों में द्वित्व नहीं है, अर्थात् गाय और बैल- दोनों भिन्न-भिन्न नहीं हैं ? या दोनों भिन्न-भिन्न हैं, परन्तु भिन्न होते हुए भी दोनों में सदृशता का बोध होता है।
प्रथम पक्ष, यदि कहें कि गाय और बैल में भिन्नता नहीं है, अर्थात दोनों में एकरूपता (एक अर्थक्रियाकारित्व) मानते हैं, तो आपका यह प्रथम-पक्ष भी उचित नहीं है, क्योंकि एक ही बैल नामक जाति में भी भिन्नता देखने में आती है, जैसे किसी बैल के सींग खंडित हैं, तो कोई बैल सींग वाला है, कोई बैल हल चलाने में काम आता है, कोई बैलगाड़ी
232 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 621, 622 233 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 622 234 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 622
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