Book Title: Bauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Jyotsnashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 374
________________ 372 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा की भी सिद्धि करता हो- ऐसे हेतु को बौद्ध-दार्शनिक हेत्वाभास मानते हैं। उपसंहार - बौद्धों के उपर्युक्त कथन की समीक्षा करते हुए ग्रन्थकर्ता आचार्य रत्नप्रभसूरि लिखते हैं- शब्द नामक पक्ष में नित्यत्व और अनित्यत्व की सिद्धि करने वाले हेतु के बारे में आप बौद्ध जो यह कथन करते हैं कि जो कथंचित-नित्य और कथंचित-अनित्य, अर्थात् नित्यानित्य-स्वरूप वाले अनेकान्तिक-साध्य की सिद्धि करता हो, तो वह सम्यक-हेतु ही है, वह हेत्वाभास नहीं है, इस प्रकार, जिन हेतुओं से अनेकान्तिक-साध्य की सिद्धि होती है, वे सम्यक-हेतु हैं। उसी प्रकार, नित्यानित्य शब्द से परिणामी साध्य की सिद्धि करने वाले हेतुओं के समान यह हेतु भी सम्यक्-हेतु है, जिस प्रकार जो परिणामी होता है, वह कथंचित-नित्य और कथंचित्-अनित्य ही होता है। घट-पट आदि जो-जो पदार्थ कृतक होते हैं, वे सभी पदार्थ परिणामी होते हैं। यहाँ पर जिस प्रकार कृतकत्व-हेतु से परिणामी-साध्य की सिद्धि होती है, उसी प्रकार कृतकत्व-हेतु से कथंचित-नित्य या कथंचित-अनित्य साध्य की सिद्धि हो, तो वह हेतु अनुचित नहीं है। इस प्रकार, के हेतु सम्यक-हेतु ही होते हैं,585 परन्तु जो हेतु सर्वथा एकान्त-नित्य अथवा एकान्त-अनित्य की सिद्धि के लिए ही प्रस्तुत किया गया हो, वह विरुद्ध हेत्वाभास है, अथवा संदिग्ध विपक्षव्यावृत्ति नाम का अनेकान्तिक-हेत्वाभास है, परन्तु इनसे पृथक कोई विरुद्ध-व्यभिचारी नाम का हेत्वाभास नहीं है। यदि आप बौद्ध कृतकत्व-हेतु से एकान्त-अनित्य पदार्थ को सिद्ध करना चाहते हैं, तो यह कृतकत्व-हेतु जहाँ-जहाँ है, वहाँ-वहाँ एकान्त-नित्य (आकाशादि) कुछ भी नहीं हैं, अपितु पर्याय से अनित्य और द्रव्य से नित्य- ऐसे कथंचित्-नित्य और कथंचित-अनित्य घट-पटादि पदार्थ ही हैं, जिससे हेतु साध्य के अभाव में होने के कारण विरुद्ध हेत्वाभास होगा। इसी प्रकार, यदि श्रावणत्व हेतु शब्द में एकान्त-नित्यत्व या एकान्त-अनित्यत्व सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किए गया हो, तो वह हेतु 584 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 125 585 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 126 586 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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