Book Title: Bauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Jyotsnashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 400
________________ 398 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा लिए प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार, सिद्धांतगत विरोध होते हुए भी दोनों में शैलीगत समानता प्रतीत होती है। पुनः, जैसा हमने पूर्व में संकेत किया था कि प्रायः सभी भारतीय-दार्शनिक शून्यवाद की समीक्षा करते हुए उसे अभावरूप मानकर ही समीक्षा करते हैं, जबकि शून्यवाद में शून्यता शब्द अनस्तित्व या अभाव का सूचक न होकर भाव, अभाव, उभय और अनुभय- इन चारों कोटियों से रहित माना गया है। हमें यह स्वीकार करने में कोई भी आपत्ति नहीं है कि जिस प्रकार अन्य भारतीय-दार्शनिकों में शून्यता का अर्थ अभाव या अस्तित्व का निषेध माना है, उसी प्रकार रत्नप्रभसूरि ने भी शून्यता का ग्रहण अनस्तित्व या अभाव के रूप में ही किया है, जबकि सत्य यह है कि बौद्ध-दार्शनिक उसे भाव और अभाव- दोनों से परे मानते हैं। माध्यमिक-कारिका के प्रारंभ में ही बुद्ध की वंदना करते हुए कहा गया है कि तत्त्व न शाश्वत है, न उच्छेदरूप है, न वह एक है, न वह अनेक है, न वह नित्य है, न वह अनित्य है। इस प्रकार, यह तो स्पष्ट ही है कि शून्यवाद एकान्त-शाश्वतवाद या एकान्त-उच्छेदवाद को स्वीकार नहीं करता है। दुर्भाग्य यही रहा है कि जिस प्रकार अन्य भारतीय-दार्शनिकों ने स्याद्वाद या अनेकान्तवाद को सम्यक् प्रकार से न समझकर पागलों का प्रलाप कहा है, उसी प्रकार से बौद्धों के शून्यवाद को भी सम्यक् प्रकार से न समझकर उच्छेदवाद के अर्थ में ही ग्रहण कर लिया गया है, जबकि अनेकान्तवाद और शून्यवाद- किसी अन्य स्थिति के द्योतक हैं। यह सत्य है कि स्याद्वाद और शून्यवाद दोनों ही एकान्तवाद के निषेधक होकर अनेकान्त-दृष्टि के समर्थक हैं, फिर भी जैन-दार्शनिक इसके हेतु जहाँ सकारात्मक भाषा का उपयोग करते हैं, वहीं बौद्ध-दार्शनिक नकारात्मक भाषा का उपयोग करते हैं। वे केवल इतना ही कहते हैं कि सत्ता न सत है, न असत् है, न उभय है, न अनुभय है, जबकि जैन-दार्शनिक सत्ता को अपेक्षाभेद से सत्, असत्, उभय और अनुभय- इन चारों पक्षों से स्वीकार करते हैं। संक्षेप में कहें, तो तत्त्व के स्वरूप के संदर्भ में बौद्ध और जैन-दोनों किसी सीमा तक साथ-साथ खड़े हुए प्रतीत होते हैं, किन्तु जैनों की सकारात्मक भाषा और बौद्धों की नकारात्मक भाषा उन दोनों को एक-दूसरे से विमुख बना देती है। - इस संदर्भ में, बौद्ध-दार्शनिक मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हैं और यह मानते हैं कि सत्ता अस्तित्व, नास्तित्व, उभय और अनुभय- इन चारों कोटियों से परे है। इस प्रकार, शून्यवाद भी सभी एकान्त-दृष्टियों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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