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बनारसी-नाममाला
गुण-दोषीका यथार्थ परिचय कही भी उपलब्ध नहीं होता। श्रर्धकथानकमें डालब्ध होनेवाले १६४३ से १६६८ तक के (५५ वर्षके) जीवनचार के बाद कांचवर अपने अस्तित्व से भारतवर्ष को कितने समय तक और पवित्र करत रहे, यह टीक मालूम नहीं होता। हां, बनारमावलामम मंगृहीन 'कर्मप्रकृतिविधान' नामक प्रकरण के निम्न अंतिम यद्यमे इतना जरूर मालूम होता है कि आपका अस्तित्व मंचत् १७०० नक ज़रूर रहा है: क्योकि इम मंवत्के फाल्गुन माममें उमकी रचना की गई है । यथा---
संवत् मत्रहसौ ममय, फाल्गुण भाम वमन्त । ऋतु शशिवासर सप्तमी, नत्र यह भयो सिद्धंन ।
अापकी बनाई हुई इम ममय चार रचनाएँ उपलब्ध हैनाटक ममयसार, बनारमा-विलाम (फुटकर कविनायो का संग्रह) अई कथानक और नाममाला। इनमसे शुरूके दो ग्रन्थ तो पूर्ण प्रकाशित हो चुके हैं, और अर्द्ध कथानक