Book Title: Banarsi Nammala
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir

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Page 15
________________ १२ बनारसी - नाममाला गम्भीरता और कविवर के अनुभवकी अधिकता स्पष्ट दिखाई देती है, २३ वर्षके सुदीर्घकालीन अनुभव के बादकी रचना में अधिक inga, सरसता एवं गाम्भीर्यका होना स्वाभाविक ही है । नाटक समयसार वाले उन पद्यां को जो नाममाला पद्योंके साथ मेल खाते थे यथास्थान फुटनोटोंमें दे दिया गया है । शेष जिन नामोंवाले पद्य नाममालामें दृष्टिगोचर नहीं होते उन्हें पाठकोकी जानकारीके लिये नीचे दिया जाता है: "दरम विलोकन देखनौ, अवलोकनि हगचाल । लखन दृष्टि निरखनि जुवनि, चितवनि चाहनि माल ||४७ || यान बोध अवगम मनन, जगतमान जगजान । संजम चारित श्राचरन, चरन वृत्त थिवान ||४८ || ४ सम्यक सत्य अमोघ सत, निसंदेह निरधार । १दर्शन नाम, २ ज्ञाननाम, ३चारित्रनाम, ४ सत्यनाम |

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