Book Title: Badmer Jile ke Prachin Jain Shilalekh Author(s): Jain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth Publisher: Jain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth View full book textPage 6
________________ कि पश्चिमी राजस्थान व सिन्ध में भगवान पार्श्वनाथ जिनालयों की भरमार है जो उपर्युक्त कथन के महत्वपूर्ण प्रमाण हैं। भगवान् महावीर के मोक्षगामी अन्तिम राजषि शिष्य सिन्धु सौवीर के राजा उदायन थे जिनकी राजधानी वीतभया नगरी थी। इसी धीतभया से अवन्ति नरेश प्रद्योतसेन चमत्कारी काष्ठ प्रतिमा अपनी प्रेयसी के प्राग्रह पर रात्रि में उठाकर ले गये थे जिसके कारण उदायन ने प्रद्योत पर हमला किया था व उसे परास्त कर कैद कर लिया था, पर एक प्राकाशवाणी के आधार पर वह प्रतिमा अवन्ति में ही छोड़ दी गई थी। अनेक विद्वानों का मत है कि बड़ौदा के म्युजियम में रखी हुई जैन काष्ठ प्रतिमा वही वीतभया नगरी की जिन-प्रतिमा है / यह वीतभया नगरी कालान्तर में रेत भरे तुफानों में बाल-समाधि प्राप्त कर गई पर निश्चित ही महावीर के काल में इस क्षेत्र के विस्तृत जैन-प्रभाव को प्रकट कर रही है। महावीर के काल में ही राजर्षि उदायन को दर्शन देने हेतु महावीर का इस क्षेत्र में विचरण होने की सम्भावना है तथा सांचोर के महावीर मन्दिर तथा सिरोही क्षेत्र में जीवितस्वामी की प्रतिमायें इस सम्भावना को प्रबल करती है। प्रस्तुत शिलालेखों में विक्रम संवत 1280 का एक महत्वपूर्ण शिलालेख (गुड़ा) नगर के महावीर मन्दिर से प्राप्त हुप्रा है / और उस शिलालेख में उस स्थान का नाम रड़धड़ा उल्लिखित होना इस स्थान, शिलालेख व क्षेत्र में अत्यन्त प्राचीन महावीर व जैन-प्रभाव को प्रकट करता है। __ इस क्षेत्र में कुछ प्रतिमायें सम्प्रति राजा के काल की सिद्ध हुई हैं। सम्राट् सम्प्रति सम्राट अशोक के पौत्र व कुणाल के पुत्र थे व एक प्रसिद्ध जैन-अनुयायी के रूप में विख्यात हैं। सम्राट् सम्प्रति के प्रशासन में तक्षशिला पजाब व मरुमंडल क्षत्र इत्यादि थे और इन क्षेत्रों में सम्प्रति. कालीन जैन-प्रतिमाए मिलती हैं जो कला की दृष्टि से एक विशेष रूप से पहचानी जाती है। उस काल में चूकि प्रतिमानों पर लेख लिखने की परिपाटी नहीं थी इसलिये इन प्रतिमानों का सही काल-निर्धारण करना सम्भव नहीं है, परन्तु यह प्रतिमायें इस क्षेत्र में जैन-प्रभाव को प्रमाणित करती है। - इसी सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि सिकन्दर व उस काल में इस क्षेत्र में रहने वाले मालव, क्षुद्रक इत्यादि जातियों का संघर्ष व उस संघर्ष में सिकन्दर का पराजित होना व घायल होना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य है। चन्द्रगुप्त मौर्य जैन सम्राट् थे सैल्युकस से युद्ध में इन मालवों वPage Navigation
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