Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तद्भोगावलिकर्माऽस्ति, सर्वोपायर्न नश्यांत बद्धं निकाचितं कर्म, ददाति स्वविपाकताम् ॥१५४॥ प्राप्तकर्मविपाकोयः शुभोवाप्यशुभोभवेत् वेदयन्तं सुखं दुःखं, ज्ञानी तत्र न मुह्यति ॥१५॥ ज्ञानानन्देनजीवन्सन् , बद्धकर्मोदये सति ।। पुनः कर्म न बध्नाति, शुद्धाऽऽत्मसाम्यदर्शकः॥१५६॥ जन्मनि मरणे ज्ञानी, समभावेन वर्तयन् । ज्ञानाऽऽनन्दसमुल्लासा, दान्तरंजीवनंवहेत् ॥१५७॥ घातिकमविनाशेन, चाऽघातिकर्मवेदयन्, सयोगी केवलज्ञानी, जीवन्मुक्तो भोजनः ॥१८॥ अघातिकर्मसंभुज्य, कृत्स्नकर्मक्षयात् प्रभुः सिद्धोबुद्धो भवेन्मुक्तः शुद्धोऽरूपीनिरञ्जनः ॥१५९॥ पूर्णोऽसङ्ख्यप्रदेशाऽऽत्मा, पूर्णज्ञानप्रकाशवान् , पूर्णानन्दमयोनित्यः सोऽहंध्येयो मुहुर्मुहुः ॥१६०॥ अनंतवीर्य आत्माऽह, मनन्तज्योतिषः प्रभुः देहस्थोऽपिनदेहोऽहं, बहिरन्तःप्रकाशकः ॥१६॥ सर्वधर्मास्तुसद्रपाः आत्माऽऽधारप्रजीवकाः ध्रौव्योत्पादव्ययीरूप, आत्माऽहं द्रव्यपर्यवः ॥१६२॥ पर्यायैः सदसद्रूपैः सर्वविश्वमयोविभुः आत्माऽस्मिसत्तयाचैको,व्यष्टिसमष्टिमानस्वयम्१६३। संसारिविश्वजीवानां, संघो वैराटप्रभुमहान् ॥ षड्मुव्यात्मकलोकस्य, जगत्त्वंचसमष्टिता ॥१६४॥ आत्मैवास्तिमहाब्रह्मा, केवलज्ञानतः स्वयम् । आत्मैवास्तिमहाविष्णुः शुद्धचारित्रयोगतः ॥१६॥ For Private And Personal Use Only

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