Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૧૩
कामोदयस्य सङ्कल्पान्, निरोधयति बोधतः शब्दरूपरसस्पर्शान्, नेच्छत॒सुखबुद्धितः सर्वोपाधिषु निःसङ्गः लोकसङ्गविवर्जितः हृदिसाक्षात्करोत्येव, स्वाऽऽत्मानस्वात्मरगवान् ॥ १४३॥
शुडाssत्मचित्तलग्नस्य, योग्याहारविहारिणः
साक्षिभावोपयोगस्य, हृदि ब्रह्म प्रकाशते ॥ १४४॥
मनोवाक्कायगुप्तस्य, पंचसमितिधारिणः शुद्धात्मप्रेममग्नस्य, शुद्धब्रह्म प्रकाशते
॥१४५॥
कषायोत्पादकस्त्याज्यो, नृणांसङ्गो विवेकिभिः गीतार्थसद्गुरोःसङ्गः कर्तव्यो मोक्षकांक्षित्भः ॥ १४६ ॥ शुद्धप्रेम दया सत्यं, क्षमा निलभता तथा, संयमश्च दमोदान, मात्माऽऽनन्दोऽस्तिमुक्तये ॥ १४७॥ अविद्यामोहवृत्तीनां क्षयेण स्वाऽऽत्मशुद्धता, आत्मनः पूर्णशुद्धिःसा, मुक्तिरेवसतांमता ॥१४८॥ विश्वेन सार्धमेकत्व, मात्मनो ब्रह्मसत्तया । भावयन् व्यापकोह्याऽऽत्मा, भवेद्बाह्यान्तरोविभुः १४९ सर्वविषयकामेच्छा, मन्तरा सर्वदेहिनाम्, सार्धं शुद्धात्मनःप्रीत्या वर्तनंतत्तुमुक्तये रागद्वेषविना सर्व-, जीवैः सह प्रवर्तनम्, भवेच्छुद्धोपयोगेन, मुक्तानां देहवर्तिनाम् ॥ १५१ ॥ प्रारब्धकर्म भोगेप, साक्षीभूयप्रवर्तिनाम् ॥ शुद्धोपयोगिनां मोहो, नोद्भवेत् कर्मकारणाम्॥ १५२॥ कर्मविपाक रोधार्थ, ज्ञानवैराग्यवीर्यतः कृतप्रयत्न नैष्फल्यं, प्रारब्धं कर्म तन्मतम्
,
For Private And Personal Use Only
॥१४२॥
॥१५०॥
॥१५३॥

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130