Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२ सम्यक्त्वदर्शनंव्यक्त, माssत्मोपयोग इष्यते आत्मोपयोगिनां सर्वे मार्गा मोक्षाय भाषिताः ॥ ४८७ || सम्यक्त्वदर्शनं प्राप्य, मा प्रमादं कुरुष्वभोः आत्मन् !! शुद्धस्वरूपंते, चिन्तय स्वस्थिरोभव ||४८८ || संत्याssसत्यंच विज्ञाय, मा मुह्य मोहकर्मणि; असत्ये वर्तमानोऽपि, तत्र सत्यं न वेदय ॥४८९ ॥ सम्यग्दृष्ट्या प्रविज्ञाय, स्वाऽऽत्मधर्मे रतिं कुरु प्रारब्धकर्मभोगेषु, रतिं मा कुरु चेतन !!! ॥ ४९०॥ वैषयिकरतित्यक्त्वा, शुद्धात्मनि रतिं कुरु; पवित्राssत्मा भवस्पष्टं, परब्रह्ममयो भव ॥ ४९२ ॥ सम्मील्य सागरे बिन्दु, येथाब्धिरूपतां भजेत् तथा परात्मर्ता प्राप्य, स्वाऽऽत्मासिद्धो भवेत्स्वयम् ||४९२|| मनोवाक्कायजान् दोषान् वारय निजशक्तितः धारय सद्गुणान् सर्वान्, जीव ! स्वाभाविकैर्गुणैः ॥४९३॥ 'सन्त्यज्य दुर्मतिं दुष्टां, सन्मति भज भावतः शुभाशुभ विपाकेषु, हर्ष शोकश्च संत्यज ॥४९४॥ कर्माधीना जगजीवा, मित्राणि शत्रवो न ते आत्मोपयोगभावेन, सर्वजीवान् क्षमापय ॥ ४९५॥ रागद्वेषौ न मे सर्व-, विश्वस्मिन् देहिनः प्रति उत्थितोऽहं स्वमुक्त्यर्थं समोऽहं सर्वदेहिषु ॥ ४९६॥ परब्रह्मपदाऽवाप्त्यै मनोवाक्कायसाधनैः , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " उत्थितोऽहं परप्रीत्या, सद्गुरु कृपयाभृशम् ॥ ४९७॥ परब्रह्ममहावीर - कृपां याचे स्वमुक्तये; सतां कृपाकटाक्षेण, मदुद्धारो भवेद् ध्रुवम् ॥ ४९८ ॥ For Private And Personal Use Only

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