Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ पश्चात्तापोऽस्ति दोषाणां, गुणानामनुमोदना: सर्वसङ्घस्य दासाऽनु, दासोऽहमुपयोगवान् ॥४९९॥ दासोऽहं सर्वसाधूनां, साध्वीनांच विशेषतः तत्कृपया मदुद्धारो, भूयात्तत्प्रार्थयाम्यहम् ॥५००॥ सर्वसङ्घस्य सेवायां, स्वार्पणभाववानहम् : आत्मशुद्धोपयोगार्थ, यते निष्कामभक्तितः ॥५०१॥ आत्मनोगुणदोषाणां-, कर्तव्यंच निरीक्षणम् ; पश्चात्तापादियोगेन-, कर्तव्या चाऽऽत्मशुद्धता ॥५०२॥ गुप्ताव्यक्ताश्चयेदोषा, हर्तव्या पूर्णयत्नतः दोषाभवाय मोक्षाय, गुणाज्ञेया विवेकतः ॥५०३॥ गुणा निजाऽऽत्मनोरूपं, मोहरूपंतु दुर्गुणाः दोषवृन्दविनाशेन, स्वाऽऽत्मशुद्धिंकुरु द्रुतम् ॥५०४॥ मुक्तिःकदापि नस्याडि, रागदूषक्षयं विना, अतोरागादिदोषाणां, नाशाय त्वं यतस्वभोः ॥५०॥ दोषप्रमादनाशार्थ-, माऽऽत्मरूपं विचारय%3; गुणान्व्यक्तान् कुरुष्वत्वं, प्रमादं मा कुरुक्षणम् ॥५०६॥ गारुडिको यथा सर्प-विषमुत्तारयेद् द्रुतम् , जागुलीमन्त्रयोगेन, ज्ञानी मोहविषं तथा ॥५०७॥ शुद्धोपयोगमन्त्रेण, मोहाहेर्विषमुत्तरेत् : ब्रह्मविद्भवतिब्रह्म निर्भयोब्रह्मविज्जनः ॥५०८॥ अग्निरूपा भवेन्नून, मग्नियोगेन वर्तिका; शुडाऽऽत्मभावनालीनः शुद्धाऽऽत्माजायते तथा ॥५०९॥ यथाऽऽत्मकथनं तद्वद्, वर्तनं शक्तितो भवेत् : तदानिजाऽऽत्मनःशुद्धि, स्तथा मुक्तिश्च जायते ॥५१०॥ For Private And Personal Use Only

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