Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૪૧ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यकश्रद्धानसम्यक्त्व - लाभात्पश्चात्प्रकाशते; अल्पकाले चिरंकाले, चारित्रं चाऽऽत्मनः स्फुटम् ॥ ४७५ ॥ स्वाऽऽत्मानंस्वं परिज्ञाय, शीघ्रमुत्तिष्ठजागृहि; स्वपर्यांयगुणानांत्व, माविभविकुरुतम् ॥४७६॥ आत्मनः पूर्णशुद्धिर्या, सैवसाध्या जिनोदिता साध्यलक्ष्योपयोगेन, स्वाऽऽत्मशुद्धिंकुरुतम् ॥४७७॥ साध्यलक्ष्यं हृदिध्यात्वा, कर्तव्यकार्यमाचर !!! आत्मोत्साहेन वर्तस्व प्रमादांश्चनिवारय ॥४७८॥ प्रतिक्षणं परब्रह्म, शुद्धरूपंविचारय; भूयाः शुद्धाऽऽत्ममग्नस्त्वं, विस्मृत्यमोह भावनाम् ॥ ४७९ ॥ निर्ममोभवसर्वत्र, दृश्याऽदृश् येषु वस्तुषुः नाsहंकारीभव व्यक्त-, दृश्यादृश्येषु सर्वथा ||४८० || साक्षिभावेनसर्वत्र, वर्तस्वस्वोपयोगतः औपचारिककार्येषु, निर्लेपो भवबोधतः ॥४८१॥ मृत्युनानिर्भयीभूय - स्वाऽऽत्मनिनिर्भयचर; जातस्य वपुषोनाशः स्वयंत्वमविनाशवान् ||४८२|| जातानांहिविनाशोऽस्ति, तेषां शोकंनिवारय; आत्माऽसिसच्चिदानन्दः स्वस्वरूपंविचारय ॥ ४८३ || साधयस्वाssत्मनः शुद्धिं वारय मोहवासनाम् जनान् स्मारय सद्ब्रह्म- धारय स्वोपयोगिताम् ॥४८४|| जीव !! शुद्धोपयोगेन, म्रियस्व मोहभावतः विस्मर मोहभावास्त्व, मात्मरूपंच संस्मर - ||४८५ ॥ असंख्यमार्गा मोक्षस्य, सन्तिस्वाऽऽत्मोपयोगिनाम् : तेषामेकमपिप्राप्य - सिद्धाः सेत्स्यन्ति देहिनः ॥ ४८६ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130