Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૩ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नास्तिशर्मच पुत्राद्यै, लक्ष्मीदारादिभिर्न च यशोविद्यादिभिर्नास्ति, किञ्चिन्न बाह्यवस्तुभिः || २६२|| मैथुनेन सुखनास्ति, प्रत्युत दुःखकृद् भवेत्; मनोवाक्काययोगेन, ब्रह्माराधनतः सुखम् भ्रमतां वाह्यसौख्यार्थ सर्वत्र चक्रवर्तिनाम्; मिलिता सत्यशान्तिन, सत्यशान्तिर्निजाऽऽत्मनि ॥ २६४॥ defeata शर्माशा-, सागरोऽस्ति भयङ्करः तत्पारं कोऽपि न प्राप्तः पारं यास्यसि नो ध्रुवम् ॥२६५॥ जडानन्दाप्तये ययत्, कल्प्यते तत्तु दुःखकृत; जायतेऽनुभव प्राप्य तत्र किं परिमुह्यसि यशःसन्मान कीर्त्यर्थं नामरूप प्रमोहतः कृतं यत्तन्न शान्त्यर्थं स्यात्प्रत्युतच दुःखकृत् बाह्यानन्दाय यच, क्रियते तत्तं दुःखकृत: जायते मोहिनां नृणां, नच ब्रह्मसुखेषिणाम् ; ॥२६८॥ कोटिकोटिमहोपायै, नित्यानन्दो न बाह्यतः आत्मन्येव सुखं सत्यं, बाह्ये त्वं मा परिभ्रम विद्यया न सुखं सत्यं नच शान्तिरविद्ययाः शास्त्रेभ्यो न सुखं शान्ति, विवादाच न जायते ॥२७०॥ सत्त्वरजस्तमेोजन्यं, सुखं तु नैव तात्त्विकम् ; सत्त्वादिप्रकृतेभिन्न, मात्मसुखं प्रवेदय शुभाशुभमनोवृत्ति-लयेनैव प्रकाश्यते: निर्विकल्पं सुखं सत्य, मात्मनःस्वनुभूयते अन्तर्बहिश्च सर्वत्र, सुखमाऽऽत्मोपयोगिनाम् ; सर्वथा सर्वदा नित्य, मस्ति भोगाप्तिमन्तरा ॥ २७९ ॥ ॥ २७२ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ २६३ ॥ ॥ २६६ ॥ ॥२६७॥ ॥२६९॥ ॥२७३॥

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