Book Title: Atmashuddhipayog
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Buddhisagar
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36 मुक्तिस्वर्गश्च नारीणां, शूद्राणां म्लेच्छदेहिनाम् । पापकर्मपरित्यागात् , सद्गुणाचारतश्चवै ॥४३९॥॥ पापाचारविचाराणां, पश्चात्तापो भृशंभवेत्। ईश्वरप्रार्थनायोगात्, पवित्राऽऽत्मास्वयंभवेत् ॥४४०॥ पूर्वोक्तसद्गुणाचारै, जैनधर्मों जगत्रये; सर्वजातीयलोकानां, मुक्तिदोऽस्तिस्वभावतः॥४४१॥ पापाद्दुःखसुखं धर्मात्, सर्वत्र विश्वदेहिनाम् : इतिविज्ञायधर्मार्थ, जीव!! वारय दुर्गुणान् ॥४४२॥ दुष्टव्यसनदासाये, दुर्गुणैर्येच जीवकाः दुष्टप्रवृत्तिदासाये, मुक्तिंयान्ति न हिंसकाः ॥४४३॥ विनेयस्तत्वजिज्ञासु, राहतःसत्यपालका शुद्धोपयोगयोग्यामो, मृतःसन्यश्चजीवति ॥४४४॥ सद्गुणैर्येच जीवन्तो, मृताये दुष्टवृत्तिभिः येचजीवन्ति मोक्षार्थ, शुद्धाऽत्मानोभवन्तिते ॥४४५॥ अनन्तमात्मसामर्थ्य, प्रादुर्भवतिचेतने; आत्मोपयोगतः पूर्ण, परब्रह्म प्रकाशते॥४४६ ॥ वैभाविकपरीणामाद्, भिन्नो निजाऽऽत्मनि स्फुटम्; स्वाभाविकपरीणामः शुद्धोपयोग उच्यते ॥४४७॥ वैभाविकपरीणामाद्, भिन्नः स्वाभाविकाऽऽत्मनि: उपयोगपरीणाम-कुरुष्व भव्यचेतन !! ॥४४८॥ सर्वविश्वसमाजानां, कल्याणायकलौमहान् : शुद्धोपयोग एवास्ति, सर्वथा मोक्षदायकः ॥४४९॥ सर्वदोषविनाशाय, सर्वसद्गुणहेतवे; कृत्स्नकर्मक्षयार्थच, शुद्धोपयोगमाचर ॥४५०॥
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